जब गर्भनिरोधक के बिना 1 वर्ष तक कोशिश करने के बाद भी स्वाभाविक रूप से कोई विवाहित जोड़ा गर्भधारण करने में अक्षम रहता है तो उसे बांझपन कहा जाता है. भारत में 10 से 15% जोड़े बांझपन से पीड़ित हैं. यह कई कारणों से हो सकता है जैसे मधुमेह, उच्च रक्तचाप, थायराइड, मोटापा, हारमोनल समस्याएं और पौलिसिस्टिक अंडाशय सिंड्रोम पीसीओएस.
इस के अलावा गलत लाइफस्टाइल की आदतें जैसे तंबाकू, शराब और खराब भोजन का सेवन और बिना शारीरिक मेहनत के जीवन जीने के परिणामस्वरूप होता है. यहां यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि बांझपन के कुल मामलों में एकतिहाई मामलों को के महिला साथी, एकतिहाई मामलों में पुरुष साथी और बाकी मामलों में दोनों साथी इस में बराबर के भागीदार होते हैं. इसलिए यह समझना आवश्यक है कि बांझपन सिर्फ एक महिला से जुड़ा मुद्दा नहीं है जैसाकि समाज अभी भी सोचता है.
अकसर देखा गया है कि पुरुष साथी में कई समस्याएं जैसे इरैक्टाइल डिस्फंक्शन यानी नपुंसकता और एजोस्पर्मिया यानी शुक्राणुओं की अनुपस्थिति होती है जिस से बांझपन की स्थिति आ जाती है. कुछ जोड़े समस्या की गहराई में पहुंचे बिना बच्चे पैदा करने की कोशिश करते रहते हैं. उन में से कई बाबाओं से भी संपर्क करते हैं और उन के समाधान के लिए झाड़फूंक का सहारा लेते हैं.
सर्वोत्तम समाधान का विकल्प
बांझपन एक मैडिकल समस्या है और इसे दूर करने के लिए चिकित्सकीय समाधान की आवश्यकता होती है. दुनिया में 25 जुलाई, 1978 को पहला 'टैस्ट ट्यूब बेबी, ' लुईस ब्राउन, पैदा हुई थी. लुईस का जन्म इनविट्रो फर्टिलाइजेशन या आईवीएफ प्रक्रिया से हुआ था. 'इनविट्रो' शब्द का अर्थ 'किसी के शरीर के बाहर' है और फर्टिलाइजेशन या निषेचन वह प्रक्रिया है जहां मादा का अंडा और पुरुष के शुक्राणु को जीवन बनाने के लिए एकसाथ फ्यूज किया जाता है. इस प्रकार अंडा और शुक्राणु शरीर के बाहर महिला के गर्भाशय के बजाय एक लैब में मिलते हैं और इसे बाद में गर्भाशय में डाल दिया जाता है.
Diese Geschichte stammt aus der September First 2022-Ausgabe von Grihshobha - Hindi.
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