40 साल की नेहा अकसर जींस या शौर्ट्स के साथ टी शर्ट पहन कर पार्क में टहलने निकल जाती. कभी स्टाइलिश वनपीस पहन कर हमउम्र पुरुषों के दिलों पर छुरियां चलाती तो कभी अपने बच्चों की उम्र के लड़केलड़कियों के साथ ठहाके लगाती. वह अपने से आधी उम्र की लड़कियों के साथ कई बार साइकिल या बाइक पर रेस भी लगाती. एक दिन तो वह अपनी बांहों में टैटू बनवा कर आई. उस की उम्र की महिलाएं उसे अजीब नजरों से देखतीं क्योंकि महल्ले की बाकी महिलाएं ये सब करने की सोच भी नहीं सकती थीं.
नेहा अपने पति के साथ रहती थी और बेटा बैंगलुरु में जौब कर रहा था. पति के जाने के बाद घर में ज्यादा काम नहीं रहता था सो वह अपनी जिंदगी अपनी मरजी से जी रही थी. वह योग और फिटनैस क्लासेज भी जाती थी. इस उम्र में भी उस ने खुद को बहुत फिट और ऐक्टिव बना रखा था. उस की उम्र की महिलाएं जहां उस से जलतीं और चिढ़तीं थीं वहीं पुरुष उसे तारीफ की नजरों से देखते. नेहा अपनी जिंदगी पूरे जोश और उत्साह के साथ जी रही थी. इस वजह से उस के चेहरे पर भी उम्र की छाप नजर नहीं आती थी. उस के चेहरे की ग्लोइंग स्किन और स्वीट स्माइल से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह पाता था.
अकसर ऐसा माना जाता है कि अधेड़ उम्र में लोगों का व्यवहार रूखा और चिड़चिड़ा हो जाता है. जीवन के प्रति उत्साह कम हो जाता है और नकारात्मक सोच हावी होने लगती है. लेकिन सच तो यह है कि अधेड़ उम्र के लोग असल में अन्य उम्र के लोगों की तुलना में ज्यादा सकारात्मक होते हैं. एक हालिया शोध के अनुसार 40 से 60 साल की उम्र के लोग युवाओं और बुजुर्गों की तुलना में कहीं ज्यादा सकारात्मक होते हैं.
जीवन मूल्य और संतुष्टि
अमेरिका और नीदरलैंड में 30 हजार लोगों पर किए गए शोध के मुताबिक अधेड़ उम्र के लोग जीवन में अच्छी चीजें होने को ले कर ज्यादा सकारात्मक होते हैं. विशेषज्ञों का मानना है कि अधेड़ लोग जो अपने जीवन में मूल्यों और संतुष्टि को ज्यादा कीमती समझते हैं वे अच्छी बातों पर ज्यादा ध्यान केंद्रित करते हैं.
Diese Geschichte stammt aus der January First 2023-Ausgabe von Grihshobha - Hindi.
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