बीमारी चाहे शारीरिक हो या मानसिक उस के कारणों के प्रति जनमानस की कुछ मान्यताएं होती हैं और अधिकांश मान्यताएं गलत ही होती हैं क्योंकि वे मनगढ़ंत या पारंपरिक मान्याओं पर आधारित होती हैं न कि चिकित्सीय दृष्टिकोण पर.
यहां कुछ उदाहरणों द्वारा मानसिक बीमारियों के प्रति मान्याओं पर प्रकाश डाल कर चिकित्सीय दृष्टिकोण से रूबरू होते हैं:
मानसिक बीमारी जेनेटिक होती है: “अरे, आप सुनीता से अपने बेटे की शादी करने जा रही हैं? आप को पता है कुछ सालों उस की मां को मानसिक बीमारी हो गई थी. सुनीता भी वैसे ही बीमार हो सकती है. यह बीमारी जेनेटिक हो सकती है. उस लड़की से अपने बेटे का रिश्ता मत जोड़ो," शांता अपनी सहेली से कह रही थी.
इस गलत सोच के कारण उच्चशिक्षित, सुंदर एवं स्वस्थ सुनीता का विवाह होना रुक गया. यह एक आम धारणा है कि अगर माता या पिता मानसिक रूप से बीमार हैं तो उन की संतान भी कुछ समय के बाद उसी बीमारी से पीड़ित हो जाती है.
यह सही नहीं है. रिसर्च के अनुसार सिर्फ 90% मरीजों के पारिवारिक इतिहास में किसी भी सदस्य का मां या पिता की बीमारी से ग्रस्त न होना यह साबित कर चुका है. रिसर्च में पाया गया कि वे सामान्य जीवन व्यतीत करते हैं.
मानसिक बीमारी जन्मपूर्व में किए गए कुकर्मों का परिणाम है : जब मानसिक रूप से बीमार किसी व्यक्ति को देखा जाता है, तो इस प्रकार टिप्पणी की जाती है, “देखो उस बेचारे की तरफ, उस ने पूर्व जन्म में कुछ पाप किए होंगे जिन की सजा वह भुगत रहा है. जो जैसा बोता है, वैसा ही काटता है. वह अपने कर्मों के फल से बच नहीं सकता."
जब लोग बीमारी के सही कारणों को नहीं जानते हैं तो इस प्रकार बुरे कर्मों के खिलाफ चेतावनी देते हैं. लेकिन हमें यह जानना चाहिए कि मानसिक बीमारियां मस्तिष्क में विशेष परिवर्तन के कारण होती हैं न कि बुरे कर्मों के परिणामस्वरूप.
गीता का गलतफहमी फैलाने वाला पाठ बड़े काम आता है. इस से पंडों की ग्रहशांति का मौका भी मिलता है, जिस में मोटी दक्षिणा मिलती है. जब सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज रंजन गोगई देवी शक्तियों की बात कर सकते हैं तो आम लोगों का क्या कहना.
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