वह जमाना गया जब प्रेम को वासना कहा जाता था और किसी का मधुर स्पर्श कोई वर्जित अपराध जैसा हुआ करता था. आज तो मनोवैज्ञानिक सलाहकार अपने हर सुझाव में यही बात कहते हैं कि कोई साथी होना चाहिए जो आप को प्रेम करे.
तकनीक, वैज्ञानिक सोच, पूंजीवाद आदि ने मानव को ऐसा व्याकुल किया है कि समाज किसी सुकून देते हुए स्पर्श की तरफ झुका चला जाता है.
भागदौड़ करती और आत्मनिर्भर बनती नई पीढ़ी को अब यह बिलकुल डरावना नहीं लगता कि किसी की मधुर संगति में रहने से कुछ गलत हो जाएगा. अकेलेपन से जूझतेजूझते जब मन किसी की जरूरत महसूस करता है तो इस में कौन सी बुराई है कि वह कोई अपना बिलकुल नजदीक ही बैठा हो. महानगरीय जीवन में रोज 15 घंटे तक खपने वाली युवा पीढ़ी अब ऐसा दर्शन बिलकुल नहीं समझना चाहती कि तनहाई में जिस की आस लगाए बैठे हैं वह न मिले तो ऐसी दशा में हम क्या करें? निराश हो जाएं? यह तक तय नहीं है कि जीवन कल या परसों कौन सा मोड़ लेने वाला है. प्रकृति का मिजाज भी ठीकठाक मालूम नहीं.
क्या कहते हैं मनोवैज्ञानिक
मनोवैज्ञानिक कहते हैं कि इस जीवन का मूल उद्देश्य आनंद की खोज ही है और यह आनंद प्रयोजनातीत है, किसी के पास बैठ कर मनचाही सुंदर बातें करनेसुनने से हमें आनंद प्राप्त होता है और उस से हमारा मन संतोष ही नहीं पाता बल्कि दिल को गहराई तक एक अपूर्व शांति भी प्राप्त होती है.
तो हमें यह जरूरी क्यों लगता है? इस का कोई कारण नहीं बताया जा सकता. वह केवल अनुभव ही किया जा सकता है. 'ज्यों गूंगे मीठे फल को रस अंतर्गत ही भावै,' आनंद का भाव वाणी और मन की पहुंच के बिलकुल अतीत है. यतो वाचो निवर्तन्ते अप्राप्य मनसा सह पर प्रेम, स्नेह, मधुर छुअन इन सब का संबंध मन के साथ है. मन बिना साथी के, आनंद के सहज भाव को ग्रहण नहीं करना चाहता.
Diese Geschichte stammt aus der October First 2023-Ausgabe von Grihshobha - Hindi.
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