फिल्मों में महिलाओं के शोषण पर या अपमानित टिप्पणी पूरा उन पर समाज हाहाकार मचा देता है, मगर फिर जब मणिपुर जैसे शहरों में औरतों को नंगा घुमाया जाता है तो यही समाज उन की रक्षा करने के बजाय उन का वीडियो बना कर सोशल मीडिया पर अपलोड कर के वायरल हो कर क्या साबित करना चाहता है ? वहीं दूसरी तरफ महिलाप्रधान फिल्मों में अगर एक भी आपत्तिजनक दृश्य हो तो समाज के ठेकेदारों द्वारा निर्माता से ले कर हीरो तक को पीट दिया जाता है. क्या सिर्फ इसलिए कि ऐसा करने से पब्लिसिटी और पैसा कमाने का सुनहरा मौका मिलेगा, जबकि असल जिंदगी में किसी लड़की की इज्जत बचाने से कोई फायदा या पब्लिसिटी नहीं मिलेगी.
ऐसी दोहरी मानसिकता वाले समाज में जब 'ऐनिमल' जैसी फिल्म में हीरो रणबीर कपूर और बौबी देओल द्वारा हीरोइन रश्मिका मदन और अन्य लड़कियों के साथ जब हिंसक और वहशियाना प्यार दिखाया जाता है तो इस की खुल कर आलोचना होती है, जबकि एक कड़वी सचाई यह भी है कि सतयुग हो या कलयुग या फिर आज का ही युग क्यों न हो औरत का समाज या अपनों के ही द्वारा शोषण होता आया है.
जो लड़कियां अपनी और परिवार की इज्जत के चक्कर में सबकुछ सह लेती हैं वे जिंदगी में आगे बढ़ जाती हैं वहीं जो औरतें अपना अपमान नहीं सह पातीं वे कई बार डाकू फूलन देवी भी बन जाती हैं.
सख्त कानून नहीं
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