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श्राद्धकर्म व उसके पीछे के सूक्ष्म रहस्य
जिसने दूसरों के हृदय में छिपे हुए उस मालिक को संतुष्ट किया है, उसके मन में पवित्र विचार उत्पन्न होते हैं।
श्रीकृष्ण के जीवन से सीखें कृष्ण-तत्त्व उभारने की कला
जो सच्चे प्रेमरस (भगवत्प्रेम-रस) को समझे बिना संसार में प्रेम खोजते हैं वे दुःखी हो जाते हैं।
इस प्रकार से रक्षाबंधन मनाना है कल्याणकारी
परमात्मा के सिवाय कोई भी चीज मिलती है तो वह छूट जाती है।
कष्ट-मुसीबतों को पैरों तले कुचलने की कला
दुःख उससे दुःखी होकर मरने की चीज नहीं है, दुःख तो पैरों तले कुचलने की चीज है।
स्वास्थ्यवर्धक एवं उत्तम पथ्यकर ‘परवल'
ज्ञान की भूख लगे तो ब्रह्मज्ञानी के टूटे-फूटे शब्द भी ज्ञान बन जाते हैं।
खून की कमी (रक्ताल्पता) कैसे दूर करें?
आत्मलाभ की बराबरी ब्रह्मांड में और कोई लाभ नहीं कर सकता है।
ऋषि प्रसाद सेवाधारियों को पूज्य बापूजी का अनमोल प्रसाद- इस प्रसाद के आगे करोड़ रुपये की भी कीमत नहीं
ईश्वर ने हमको क्रियाशक्ति दी है तो ऐसे कर्म करें कि कर्म के बंधनों से छूट जायें।
आशारामजी बापू के साथ अन्याय कब तक ? संत-समाज
महान आत्मा तो वे हैं जो महान परमात्मा में ही शांत व आनंदित रहते हैं, परितृप्त रहते हैं।
मृतक की सच्ची सेवा
दुनिया के लोग चाहे कुछ भी कहें लेकिन दुःखी होना या न होना यह आपके हाथ की बात है।
परिस्थितियों के असर से रहें बेअसर
जब तक परिस्थितियों में सत्यबुद्धि रहेगी तब तक सच्चे जीवन के दर्शन नहीं हो सकते।
आत्मबल कैसे जगायें ?
पृथ्वी का राज्य मिल जाय लेकिन आत्मराज्य का पता नहीं मिलता है तो उस राज्य को लात मारो।
सत्संग परम औषध है
जब तक जीवन में सत्संग नहीं मिला तब तक मिथ्या का संग होगा।
एकादशी को चावल खाना वर्जित क्यों ?
असाधन से बचनेमात्र से आप साधन के फल को बिल्कुल यूँ पायेंगे!
स्वास्थ्यरक्षक दैवी उपाय
हम जब ईश्वर की शरण जाते हैं तो तन और मन की थकान मिट जाती है।
महान-से-महान बना देता है सत्संग
सत्संग (सत्यस्वरूप परमात्मा का संग) एक बार हो जाय तो फिर उसका वियोग नहीं होता।
गुरुकुल शिक्षा-पद्धति की आवश्यकता क्यों ?
सत्संग अपने-आप नहीं होता, करना पड़ता है । कुसंग अपने-आप हो जाता है।
केवल नारियों की निंदा का आरोप झूठा है
विकारी सुखों को जब तक भोगा नहीं तब तक आकर्षक लगते हैं और भोगो तो पछताना ही पड़ता है।
शास्त्रानुकूल आचरण का फल क्या ?
वैराग्यप्रधान व्यक्ति इसी जन्म में अपने आत्मा को जान लेता है।
अपने जन्मदिन व महापुरुषों के अवतरण दिवस पर क्या करें ?
आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार सभी बड़प्पनों की पराकाष्ठा है।
देश-विदेश में गूंजी आवाज 'निर्दोष बापूजी को रिहा करो!
आत्मबोध होने के लिए ब्रह्मवेत्ता सद्गुरु का सान्निध्य नितांत जरूरी है।
बालक के चरित्र ने पिता को किया विस्मित
परमात्मा में विश्रांति पाने से मन-बुद्धि में विलक्षण लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
ध्यान में उपयोगी महत्त्वपूर्ण १२ योग
परमात्म-ध्यान के पुण्य के सामने बाहर के तीर्थ का पुण्य नन्हा हो जाता है।
गुरुकुल शिक्षा-पद्धति की आवश्यकता क्यों ?
गुरु की आज्ञा पालना यह बंधन नहीं है, सारे बंधनों से मुक्त करनेवाला उपहार है।
ऐसे ब्रह्मनिष्ठ महापुरुष की महिमा वर्णनातीत है !
आत्मा-परमात्मा का साक्षात्कार सभी बड़प्पनों की पराकाष्ठा है।
आप आत्मशिव को जगाओ
हे जीवात्मा! तुम चैतन्य हो, अमर हो । अपने को जानकर मुक्त हो जाना तुम्हारा कर्तव्य है ।
नारी का सम्मान व अपमान कब ?
बड़े-में-बड़ा पाप है शरीर को मैं मानना ।
विद्यार्थी संस्कार...तो जो भी काम तुम करोगे उसमें सफलता मिलेगी
जो व्यक्ति ईश्वर के रास्ते चलता है वह धैर्य न छोड़े तो पहुँच जायेगा।
विश्वमाता है श्रीमद्भगवद्गीता
जिसके चित्त में समता होती है, उसके जीवन की कीमत होती है।
यह है संसार की पोल !
संसारी चीज में कहीं भी प्रीति की, आसक्ति की तो फँसना है।
...तो ३३ करोड़ देवता भी हो जायें नतमस्तक!
जो सदा प्राप्त है वह कभी हमें छोड़ता नहीं और जो प्रतीत होता है वह सदा हमारे पास टिक नहीं सकता।