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अनुसंधान एवं विश्लेषण है सफलता की कुंजी
व्यक्ति जिस किसी क्षेत्र में जितना एकाग्र होता है उतना ही चमकता है।
अमृत को परोसने की परम्परा : गुरुपूनम महापर्व
गुरुपूनम माने बड़ी पूनम। प्रतिपदा का चाँद, द्वितीया का चाँद... ऐसे एक-एक कला बढ़ते हुए चाँद जब पूर्ण विकसित रूप में हमको दर्शन देता है तब पूनम होती है। ऐसे ही हमारे चित्त की कलाएँ बढ़ते-बढ़ते जब पूरे प्रभु की आराधना की तरफ लग जायें तो हमारे जीवन का जो उद्देश्य है वह सार्थक हो जाता है।
पूर्णता किससे - कर्मकांड, योग या तत्त्वज्ञान से ?
अविद्या के बादल हटते ही ब्रह्मविद्या के बल से मति ब्रह्म-परमात्मा का प्रसाद पा लेगी।
गुरुकृपा का ऐसा बल कि उन्मत्त हाथी हुआ निर्बल
चलती-फिरती सद्गुरुमूर्ति में श्रद्धा अटूट हो तब शिष्य का दिव्य ज्ञान प्रकट होता है।
ध्यान के अभ्यास से करें आत्मस्वरूप से तदाकारता
ऐसा कोई दिव्य कर्म नहीं है जो परमात्मा के घड़ीभर ध्यान की भी बराबरी कर सके।
ब्रह्मवाक्य से कैंसर हो गया कैंसल!
शुद्ध प्रेम तो उसे कहते हैं जो भगवान और सद्गुरु से किया जाता है।
पूज्य बापूजी का स्वास्थ्य-प्रसाद
८४ लाख जन्म-मरण की बीमारियाँ तो भगवान के ज्ञान से और सद्गुरु के सत्संग से ठीक होती हैं।
संक्रामक बीमारियों से केसे हो सुरक्षा ?
आयुर्वेद में संक्रामक बीमारियों का वर्णन आगंतुक ज्वर (अर्थात् शरीर से बाह्य कारणों से उत्पन्न बुखार या रोग) के अंतर्गत आया है। यह किसीको होता है और किसीको नहीं, ऐसा क्यों?
विद्यार्थी संस्कार
तुम भी बन सकते हो अपनी 21 पीढ़ियों के उद्धारक
महामारी ने इतने नहीं मारे तो किसने मारे?
विवेक-वैराग्य प्रखर होने पर निर्भयता तथा साहस स्वभाव बन जाता है।
सेवाधारियों के नाम पूज्य बापूजी का संदेश
दूसरे का मन भगवान में लगे ऐसा काम करना यह दूसरे की भलाई है ।
संत-महापुरुषों की जयंती मनाने का उद्देश्य
गुरु को देख मानेंगे तो आप देह से परे नहीं जायेंगे।
शोक का कारण व उसके नाश का उपाय
राग, द्वेष, भय, शोक, चिंता आदि सब देहाध्यास के कारण ही होते हैं ।
यदि पुण्यात्मा, उत्तम संतान चाहते हैं तो...
यदि माता-पिता शास्त्र की आज्ञानुसार रहें तो उनके यहाँ दैवी और संस्कारी संतानें उत्पन्न होंगी।
भगवान बड़े कि भगवान का नाम बड़ा ?
ऐसा कोई सामर्थ्य नहीं जिसका भगवद्-विश्रांति से संबंध न हो।
बलानां श्रेष्ठं बलं प्रज्ञाबलम्
बुद्धिमान मनुष्य को तो मोक्ष का पुरुषार्थ ही सार लगता है।
पूज्य बापूजी द्वारा बताये गये गठिया रोग में अत्यंत लाभकारी प्रयोग
ब्रह्मचर्य के प्रभाव से मन की एकाग्रता एवं स्मरणशक्ति का तीव्रता से विकास होता है।
जितनी निष्कामता व प्रभु-प्रेम उतना सुख !
निर्मम और निष्काम होने से आपका आत्मभाव, आत्मसुख बढ़ता है।
सूर्य का पूजन और अर्घ्य क्यों ?
अग्ने कविर्वेधा असि। ‘हे ज्ञानस्वरूप प्रभो ! तू क्रांतदर्शी (सर्वज्ञ) और कर्मफल-प्रदाता है।' (ऋग्वेद)
महामुर्ख में से कैसे बने महाविद्वान ?
तुम्हारे भीतर इतना सामर्थ्य छुपा हुआ है कि जिसके आगे इन्द्र भी रंक जैसा है।
पूज्य बापूजी का स्वास्थ्य-प्रसाद
ईश्वर की प्राप्ति में जो सहायक है वह करते हो तो वह सेवा है ।
उत्तरायण ध्यानयोग शिविर पर आया पूज्य बापूजी का पावन संदेश
जो शिविरार्थी हैं उन सभीको मेरी तरफ से धन्यवाद दे देना, ध्यान रखना उनके खाने-पीने, रहने का। यह उनको बता देना कि भगवान शिवजी पार्वतीजी को कहते हैं:
इसका नाम है आत्मसाक्षात्कार
जिज्ञासु साधकों को अपने परम लक्ष्य आत्मसाक्षात्कार' का सुस्पष्ट तात्पर्य-अर्थ जानने की बड़ी जिज्ञासा रहती है, जिसकी पूर्ति कर रहे हैं करुणासिंधु ब्रह्मवेत्ता पूज्य बापूजी :
इनके ऋण से हम कैसे उऋण हो पायेंगे ?
'हे विद्वानो ! आपकी उपदेश-वाणियों से प्रेरित होकर हम कानों से सदा कल्याणकारक एवं सुखकर वचनों को सुनें।'
सुख-दुःख ईश्वर ने बनाया कि जीव ने ?
अभि श्रव ऋज्योनतो वहेयुः। (ऋग्वेद)
बड़प्पन किसका ?
संकट में घबराओ नहीं संसार तो तुम्हारी परीक्षा है।
पूरी दुनिया में एक अजूबा है यह कार्यक्रम
रायपुर से हम जगन्नाथपुरी गये । जिस होटल में रुके थे वहाँ से पता चला कि यहाँ आशाराम बापू का आश्रम भी है । जगन्नाथजी के दर्शन कर हम आश्रम पहुँच गये ।
पुण्य कब परम कल्याणकारी होता है ?
पुण्य और पाप प्रकृति में हैं, जीवात्मा के शुद्ध स्वरुप में नहीं।