अरण्ड एक महत्वपूर्ण एवं व्यवसायिक अखाद्य तिलहन
Modern Kheti - Hindi|1st June 2024
सिंचाई देने से अरण्ड की पैदावार में आशातीत बढ़ोतरी होती है। पानी की उपलब्धता एवं भूमि की जल धारण क्षमता के अनुरूप 3-4 सिंचाईयों से लेकर 7-8 सिंचाईयां देनी पड़ती हैं। बिजाई से 50-60 दिन एवं 80-95 दिन बाद अगर नमी की कमी हो तो सिंचाई अवश्य करें। बाद में पानी सिंचाई की उपलब्धता के अनुसार गुच्छों की कटाई के बाद गर्मी में 15-20 व सर्दी में 25-30 दिन के अन्तराल पर करते रहें।
डॉ. मनजीत सिंह, डॉ. पवित्रा कुमारी, डॉ. विनोद कुमार मलिक एवं डॉ. राकेश पूनिया
अरण्ड एक महत्वपूर्ण एवं व्यवसायिक अखाद्य तिलहन

अरण्ड भारत की एक महत्वपूर्ण एवं व्यवसायिक अखाद्य तिलहन फसल है। भारत का अरण्ड के क्षेत्रफल एवं उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान है तथा अरण्ड तेल के विश्व बाजार में लगभग तीन चैथाई हिस्से पर भारत का योगदान है। गुजरात, आंध्रप्रदेश एवं राजस्थान अरण्ड की खेती के लिए मुख्य राज्य हैं, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडू आदि राज्यों में उत्पादकता बहुत ही कम है। कम उपजाऊ भूमि, बारानी खेती एवं फसल उत्पादन के आदानों का कम उपयोग के कारण अरण्ड की पैदावार कम आती है। हरियाणा में अरण्ड की खेती कम सिंचित एवं पूर्ण सिचिंत, मरगोझा एवं सरसों में तना गलन प्रभावित क्षेत्रों में सफलतापूर्वक ली जा सकती है। राजस्थान की सीमा से जुड़े जिलों सिरसा, भिवानी, हिसार, फतेहबाद, महेन्द्रगढ़, रेवाड़ी, जींद, झज्जर व गुड़गांव के कुछ हिस्से में अरण्ड की सफलता की प्रबल सम्भावनाएं हैं। इसका तेल हवाई जहाज के इंजन में तेल मशीनों में चिकनाई प्लास्टिक, चमड़ा, विभिन्न रंगों की डाई, सौंदर्य प्रसाधन, साबुन, औषधियां एवं अनेकों अन्य उत्पादों में उपयोग होने के कारण औद्योगिक महत्व है। अधिक आमदनी एवं कम जोखिम के लिए खरीफ एवं रबी की विभिन्न फसलों के साथ अन्तः फसल प्रणाली में अरण्ड की बिजाई करें। इससे अन्तः फसलों की पैदावार भी बढ़ती है। अरण्ड की अधिक पैदावार के लिए किसान निम्नलिखित उन्नत तकनीके अपनाएं।

उन्नत किस्में: बारानी एवं कम सिंचित क्षेत्र में डी सी एच 177; हाईब्रिड का प्रयोग करें। सिंचित एवं उच्च आदान प्रबंधन वाले क्षेत्रों में भी डी सी एच 177 की बिजाई करें।

यह हाईब्रिड कम पानी एवं ठण्ड वाले इलाकों में भी ज्यादा पैदावार देता है। जी सी एच 7 एवं डी सी एच 519 की बिजाई सिंचित इलाके में कर सकते हैं। डी सी एच 177 में सफेद मक्खी का प्रकोप बहुत ही कम होता है।

बिजाई का समय: संकर किस्मों की बिजाई का सर्वोत्तम समय जून अन्त से मध्य जुलाई है। जुलाई अन्त तक बिजाई अवश्य कर लें। जल्दी बिजाई से खरपतवारों एवं कीटों का ज्यादा प्रकोप होता है और अगस्त में बिजाई करने से सर्दी का प्रकोप अधिक एवं उत्पादन कम हो जाता है।

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भूमि सुधार के लिए प्रयासों की आवश्यकता...
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\"यदि पृथ्वी बीमार है तो यह लगभग निश्चित है तो हमारा जीवन भी बीमार है। यदि हम मनुष्य के अच्छे जीवन व स्वास्थ्य की कामना करते हैं तो यह बहुत आवश्यक है कि भूमि के स्वास्थ्य को ठीक करना भी बहुत आवश्यक है, मॉडर्न तकनीकों ने भूमि के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाला है। इस पृथ्वी पर जैसा भी जीवन है यद्यपि स्वस्थ है या अस्वस्थ है यह भूमि की उपजाऊ शक्ति/अर्थात भूमि के स्वास्थ्य पर ही निर्भर करता है क्योंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर भोजन पदार्थ धरती में से ही आ रहे हैं। प्रसिद्ध विज्ञानी कारले इस लक्ष्य पर पहुंचा कि कैमिकल फर्टीलाइज़र भूमि के स्वास्थ्य को रासायनिक खादें सुरक्षित नहीं रख सकते। यह रसायन भोजन अथवा भूमि में स्थिर हो जाते हैं सिर्फ कार्बनिक पदार्थ ही भूमि के स्वास्थ्य को बरकरार रख सकते हैं।\"

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आंवला एक महत्वपूर्ण व्यापारिक महत्व का फल वृक्ष है। औषधीय गुण व पोषक तत्वों से भरपूर आंवले के फल प्रकृति की एक अभूतपूर्व देन है। इसका वानस्पतिक नाम एम्बलिका ओफीसीनेलिस है।

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जल चक्र में बढ़ रहा है मानवीय हस्तक्षेप
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नासा के वैज्ञानिकों ने लगभग 20 सालों का अवलोकन करके पाया कि दुनिया भर में जल चक्र तेजी से बदल रहा है। इनमें से अधिकांश खेती जैसी गतिविधियों के कारण हैं, इनका कुछ इलाकों में पारिस्थितिकी तंत्र और जल प्रबंधन पर प्रभाव पड़ सकता है।

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कृषि क्षेत्र में बढ़ा रोजगार
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आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 में भले ही रोजगार की उजली तस्वीर पेश की गई है, लेकिन इसने सेवा और निर्माण क्षेत्र में रोजगार घटने और कृषि क्षेत्र में रोजगार बढ़ने की बात कर यह साबित कर दिया है। कि सरकार कृषि क्षेत्र के रोजगार को दूसरे क्षेत्रों में स्थानांतरित करने में विफल साबित हुई है।

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गेहूं फसल की सिंचाई कब और कैसे करें?
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भारत में गेहूं की फसल शरद ऋतु में उगाई जाती है जो कि लगभग 130 दिन का फसल चक्र पूरा करती है। असिंचित क्षेत्रों में गेहूं की फसलावधि मध्य अक्टूबर से मार्च माह के बीच होती है और सिंचित क्षेत्रों में यह अवधि मध्य नवम्बर से मार्च से अप्रैल के बीच होती है। भारत में गेहूं की फसल मुख्य रुप से पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान, मध्यप्रदेश एवं महाराष्ट्र राज्यों में होती है।

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शरीर की प्रणाली को सुचारू रूप से चलाने के लिए संतुलित आहार की आवश्यकता होती है। इसके सही संतुलन से विशेष प्रकार की बिमारियों से बचा जा सकता है।

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एक नए शोध में दिखाया गया है कि पौधों में नाइट्रिक ऑक्साइड (एनओ) के स्तर को कम करने से धान की फसल और अरेबिडोप्सिस में नाइट्रोजन अवशोषण और नाइट्रोजन के सही उपयोग या नाइट्रोजन यूज एफिशिएंसी (एनयूई) में बहुत ज्यादा सुधार हो सकता है।

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जितना प्राकृतिक खेती पर जोर, उतना बजट नहीं ..
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पिछले कुछ वर्षों से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने की खूब बातें हो रही हैं। केंद्र सरकार प्राकृतिक खेती पर काफी जोर दे रही है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों के बजट के आंकड़े देश में प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन देने के मामले में खास उत्साहजनक नजर नहीं आते।

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वैज्ञानिक विधि से भिंडी उत्पादन की उन्नत खेती
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वैज्ञानिक विधि से भिंडी उत्पादन की उन्नत खेती

परिचय : भिंडी सबसे लोकप्रिय सब्जियों में से एक है, जिसे लोग लेडीज़ फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं। भिंडी का वैज्ञानिक नाम एबेलमोलकस एस्कुलेंटस (Abelmoschus esculentus L.), कुल / परिवार मालवेसी तथा उत्पत्ति स्थान दक्षिणी अफ्रीका अथवा एशिया माना जाता हैं।

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