परन्तु आजकल जैविक खाद, सान्द्रण खलियाँ, मानवमल का प्रयोग, बायोगैस स्लरी, हरी खाद, फसल अवशेष, गन्ने की खोई, गन्ने के रस का मैल, लकड़ी के बुरादे की खाद, तम्बाकू की छीलन तथा खली, भूसी और छिलके, चाय की छीलन, शुष्क खून का चूरा, मछलियों का चूर्ण, सींगों तथा खुरों की खाद, पक्षियों के पंख, ऊन और रेशम के निरर्थक पदार्थ, कुक्कट की खाद, ग्वानों, तालाब में जमा कचरा आदि खाद के रूप में प्रयोग कर फसल उत्पादन में वृद्धि एवं उर्वरता को कायम रखा जा सकता है। क्योंकि यह पदार्थ किसी न किसी रूप में व्यर्थ होते हैं। यदि इन्हें कार्बनिक खादों के रूप में प्रयोग किया जाये तो किसान काफी हद तक पैसा बचा सकते हैं एवं खद्यान्न गुणवत्ता को भी बनाये रख सकते हैं।
सड़ी गोबर की खाद :
इसमें लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं। लेकिन इनका कुल प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों की अपेक्षा कम होता है। पूर्णत: सड़े हुए गोबर की खाद में क्रमश: 0.5 0.2 एवं 0.5 प्रतिशत नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश होता है। इसके अतिरिक्त जस्ता 40.0, तांबा 2.8, लोहा 1.46, मैगनीज 61.0 पी.पी.एम. मिलते हैं।
दलहनी हरी खाद :
ढचा या हरे पौधों को खेत में ही हल द्वारा मिट्टी में मिलाने की प्रक्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। हरी खाद के रूप में प्रयोग की जाने वाली मुख्यतः फसल ढैचा, सनई, ग्वार आदि हैं। इनके प्रयोग से भूमि में पोषक तत्व संतुलित मात्रा में मिलते हैं। कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, मैगनीशियम व लोहे की पूर्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी है।
जैविक खाद :
ये फसलों में पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु अत्यन्त प्राकृतिक, सस्ते एवं आसानी से प्रयोग किये जाने वाली खाद है। सूक्ष्म जीव प्रतिवर्ष लगभग 131 मिलियन टन तक नाइट्रोजन एकत्रित कर सकते हैं। इसके अलावा जैव उर्वरक जो पोषक तत्वों को चलायमान या घोलक का कार्य करतें हैं, जो कि फसल की अच्छी पैदावार एवं खाद्यान्न गुणवत्ता को बनाये रखते हैं।
मानव मल का प्रयोग :
मानव मल में कम्पोस्ट एवं अन्य प्राकृतिक खादों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्व मिलते हैं, जो कि फसल की अच्छी पैदावार एवं खाद्यान्न गुणवत्ता को बनाये रखते हैं।
फसल अवशेष :
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गोभीवर्गीय सब्जियों के रोग और उनकी रोकथाम
सर्दी में गोभीवर्गीय सब्जियों (फूलगोभी, बंदगोभी व गांठगोभी) का बहुत महत्व है क्योंकि सर्दी में सब्जियों के आधे क्षेत्रफल में यही सब्जियां बोई जाती हैं। इन सब्जियों को कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोर्स, विटामिन ए एवं सी इत्यादि का अच्छा स्रोत माना जाता है।
हाई-टेक पॉलीहाउस खेती में अधिक उत्पादन के लिए कंप्यूटर की भूमिका
भारत देश में आज के समय जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिससे रहने के लिए लगातार कृषि योग्य भूमि का उपयोग कारखाने लगाने, मकान बनाने में हो रहा है। कृषि योग्य भूमि कम होने से जनसंख्या का भेट भरने की समस्या से बचने के लिए सरकार ने विभिन्न योजनाएं चला रखी हैं जिससे किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकें।
सरसों की खेती अधिक उपज के लिए उन्नत शस्य पद्धतियाँ
सरसों (Brassica spp.) एक महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है, जो पोषण और व्यवसायिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है। भारत में सरसों का उपयोग मुख्यतः खाद्य तेल, मसाले और औषधि के रूप में किया जाता है।
गेहूं में सूक्ष्म पोषक तत्वों का महत्व
गेहूं में मुख्य पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग अति आवश्यक है। प्रायः किसान भाई उर्वरकों में डी.ए.पी. व यूरिया का अधिक प्रयोग करते हैं और पोटाश का बहुत कम प्रयोग करते हैं।
पॉलीटनल में सब्जी पौध तैयार करना
देश में व्यवसायिक सब्जी उत्पादन को बढ़ावा देने में सब्जियों की स्वस्थ पौध उत्पादन एक महत्वपूर्ण विषय है जिस पर आमतौर से किसान कम ध्यान देते हैं।
क्या है मनरेगा की कृषि में भागेदारी?
ग्रामीण विकास मंत्रालय की ओर से कमियां पूरी करें और गुणवत्ता बढ़ाने के लिए संबंधित विभागों से कनवरजैंस के लिए जोर दिया जाता है। जैसे खेतीबाड़ी, बागवानी, वानिकी, जल संसाधन, सिंचाई, प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना, नेशनल रूरल लिवलीहुड मिशन और अन्य प्रोग्रामों के सहयोग से जो कि मनरेगा अधीन निर्माण की संपति की क्वालिटी को सुधारना और टिकाऊ बनाया जा सके।
अलसी की फसल के कीट व रोग एवं उनका नियंत्रण
अलसी की फसल को विभिन्न प्रकार के रोग जैसे गेरुआ, उकठा, चूर्णिल आसिता तथा आल्टरनेरिया अंगमारी एवं कीट यथा फली मक्खी, अलसी की इल्ली, अर्धकुण्डलक इल्ली चने की इल्ली द्वारा भारी क्षति पहुंचाई जाती है जिससे अलसी की फसल के उत्पादन में भरी कमी आती है।
मटर की फसल के कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें
अच्छी उपज के लिए मटर की फसल के कीट एवं रोग की रोकथाम जरुरी है। मटर की फसल को मुख्य रोग जैसे चूर्णसिता, एसकोकाईटा ब्लाईट, विल्ट, बैक्टीरियल ब्लाईट और भूरा रोग आदि हानी पहुचाते हैं।
कृषि-वानिकी और वनों व वृक्षों का धार्मिक एवं पर्यावरणीय महत्व
कृषि-वानिकी : कृषि वानिकी भू-उपयोग की वह पद्धति है जिसके अंतर्गत सामाजिक तथा पारिस्थितिकीय रुप से उचित वनस्पतियों के साथ-साथ कृषि फसलों या पशुओं को लगातार या क्रमबद्ध ढंग से शामिल किया जाता है। कृषि वानिकी में खेती योग्य भूमि पर फसलों के साथ-साथ वृक्षों को भी उगाया जाता है। इस प्रणाली द्वारा उत्पाद के रुप में ईंधन की लकड़ी, हरा चारा, अन्न, मौसमी फल इत्यादि आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। इस प्रणाली को अपनाने से भूमि की उपयोगिता बढ़ जाती है।
'रिचेस्ट फार्मर ऑफ इंडिया' अवार्ड प्राप्त करने वाली सफल महिला किसान-नीतुबेन पटेल
नीतूबेन पटेल ने जैविक कृषि में उत्कृष्ट योगदान देकर \"सजीवन\" नामक फार्म की स्थापना की, जो 10,000 एकड़ में 250 जैविक उत्पाद उगाता है। उन्होंने 5,000 किसानों और महिलाओं को प्रशिक्षित कर जैविक खेती में प्रेरित किया।