कृषि में कार्बनिक खादों का महत्व
Modern Kheti - Hindi|15th July 2024
मिट्टी की उत्पादन क्षमता जिससे पौधों को सन्तुलित मात्रा में पोषक तत्व उपलब्ध होते रहें। कार्बनिक खादें जैसे, गोबर की खाद, कम्पोस्ट परम्परागत रूप से मृदा उर्वरा शक्ति में वृद्धि कर फसलों की अच्छी पैदावार लेने के लिए अच्छी मानी गई है।
डॉo रविन्द्र कुमार राजपूत विषय वस्तु विशेषज्ञ (मृदा विज्ञान) कृषि विज्ञान केन्द्र, मथुरा डॉo प्रदीप राजपूत, सहायक प्राध्यापक, स्कूल ऑफ एग्रीकल्चर, आई.टी.एम. यूनिवर्सिटी ग्वालियर डॉo अनुपमा वर्मा, टीचिंग एसोसिएट शस्य दैहिकी विभाग, चन्द्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक विश्वविद्यालय, कानपुर डॉ० अल्पना पौल, सहायक प्राध्यापक, कृषि संकाय, जी.एल.ए. विश्वविद्यालय, मथुरा श्री जितेन्द्र सिंह, एफ.सी.ए., फसल अवशेष प्रबंधन परियोजना, कृषि विज्ञान केन्द्र, मथुरा
कृषि में कार्बनिक खादों का महत्व

परन्तु आजकल जैविक खाद, सान्द्रण खलियाँ, मानवमल का प्रयोग, बायोगैस स्लरी, हरी खाद, फसल अवशेष, गन्ने की खोई, गन्ने के रस का मैल, लकड़ी के बुरादे की खाद, तम्बाकू की छीलन तथा खली, भूसी और छिलके, चाय की छीलन, शुष्क खून का चूरा, मछलियों का चूर्ण, सींगों तथा खुरों की खाद, पक्षियों के पंख, ऊन और रेशम के निरर्थक पदार्थ, कुक्कट की खाद, ग्वानों, तालाब में जमा कचरा आदि खाद के रूप में प्रयोग कर फसल उत्पादन में वृद्धि एवं उर्वरता को कायम रखा जा सकता है। क्योंकि यह पदार्थ किसी न किसी रूप में व्यर्थ होते हैं। यदि इन्हें कार्बनिक खादों के रूप में प्रयोग किया जाये तो किसान काफी हद तक पैसा बचा सकते हैं एवं खद्यान्न गुणवत्ता को भी बनाये रख सकते हैं।

सड़ी गोबर की खाद :

इसमें लगभग सभी आवश्यक पोषक तत्व होते हैं। लेकिन इनका कुल प्रतिशत रासायनिक उर्वरकों की अपेक्षा कम होता है। पूर्णत: सड़े हुए गोबर की खाद में क्रमश: 0.5 0.2 एवं 0.5 प्रतिशत नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश होता है। इसके अतिरिक्त जस्ता 40.0, तांबा 2.8, लोहा 1.46, मैगनीज 61.0 पी.पी.एम. मिलते हैं।

दलहनी हरी खाद :

ढचा या हरे पौधों को खेत में ही हल द्वारा मिट्टी में मिलाने की प्रक्रिया को हरी खाद देना कहते हैं। हरी खाद के रूप में प्रयोग की जाने वाली मुख्यतः फसल ढैचा, सनई, ग्वार आदि हैं। इनके प्रयोग से भूमि में पोषक तत्व संतुलित मात्रा में मिलते हैं। कैल्शियम, फास्फोरस, पोटेशियम, मैगनीशियम व लोहे की पूर्ति के लिए अत्यन्त उपयोगी है।

जैविक खाद :

ये फसलों में पोषक तत्वों की पूर्ति हेतु अत्यन्त प्राकृतिक, सस्ते एवं आसानी से प्रयोग किये जाने वाली खाद है। सूक्ष्म जीव प्रतिवर्ष लगभग 131 मिलियन टन तक नाइट्रोजन एकत्रित कर सकते हैं। इसके अलावा जैव उर्वरक जो पोषक तत्वों को चलायमान या घोलक का कार्य करतें हैं, जो कि फसल की अच्छी पैदावार एवं खाद्यान्न गुणवत्ता को बनाये रखते हैं।

मानव मल का प्रयोग :

मानव मल में कम्पोस्ट एवं अन्य प्राकृतिक खादों की अपेक्षा अधिक पोषक तत्व मिलते हैं, जो कि फसल की अच्छी पैदावार एवं खाद्यान्न गुणवत्ता को बनाये रखते हैं।

फसल अवशेष :

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भूमि सुधार के लिए प्रयासों की आवश्यकता...
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\"यदि पृथ्वी बीमार है तो यह लगभग निश्चित है तो हमारा जीवन भी बीमार है। यदि हम मनुष्य के अच्छे जीवन व स्वास्थ्य की कामना करते हैं तो यह बहुत आवश्यक है कि भूमि के स्वास्थ्य को ठीक करना भी बहुत आवश्यक है, मॉडर्न तकनीकों ने भूमि के स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डाला है। इस पृथ्वी पर जैसा भी जीवन है यद्यपि स्वस्थ है या अस्वस्थ है यह भूमि की उपजाऊ शक्ति/अर्थात भूमि के स्वास्थ्य पर ही निर्भर करता है क्योंकि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर भोजन पदार्थ धरती में से ही आ रहे हैं। प्रसिद्ध विज्ञानी कारले इस लक्ष्य पर पहुंचा कि कैमिकल फर्टीलाइज़र भूमि के स्वास्थ्य को रासायनिक खादें सुरक्षित नहीं रख सकते। यह रसायन भोजन अथवा भूमि में स्थिर हो जाते हैं सिर्फ कार्बनिक पदार्थ ही भूमि के स्वास्थ्य को बरकरार रख सकते हैं।\"

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वैज्ञानिक विधि से भिंडी उत्पादन की उन्नत खेती
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परिचय : भिंडी सबसे लोकप्रिय सब्जियों में से एक है, जिसे लोग लेडीज़ फिंगर या ओकरा के नाम से भी जानते हैं। भिंडी का वैज्ञानिक नाम एबेलमोलकस एस्कुलेंटस (Abelmoschus esculentus L.), कुल / परिवार मालवेसी तथा उत्पत्ति स्थान दक्षिणी अफ्रीका अथवा एशिया माना जाता हैं।

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