मैंने पहली बार उसे स्कूल बस में देखा था. वह पीछे की सीट पर अकेला बैठा था और खिड़की से बाहर देख रहा था. वह अकेला जान पड़ता था इसलिए मैं ने उस पर दया की.
मुझे उस पर तरस आ रहा था, क्योंकि उस ने मुझे खुद की याद दिला दी थी. मैं शर्मीला, अकेला इसलिए मित्रहीन हुआ करता था.
“इसलिए क्या मैं उस के पास जा कर बैठ जाऊं?” लेकिन मैं ने ऐसा नहीं किया. वह नया है और जल्दी ही दोस्त बना लेगा, मैं ने सोचा, “यह केवल समय की बात है."
पूरे सप्ताह मैं ने उस से परहेज किया. स्कूल बस में वह सब से पीछे की ओर अपनी निर्धारित जगह पर बैठा, जबकि मैं अन्य बच्चों के साथ शामिल हो जाता था. इतना ही नहीं, मेरी उन के साथ दोस्ती भी थी. उन्हें कमोबेश मेरी उपस्थिति की ज्यादा परवाह भी नहीं होती थी.
वह स्कूल में भी अकेला ही रहता था. इंटरवल में भी क्लासरूम में ही रहता और लंचबौक्स भी नहीं लाता था.
एक दिन सुबह जब मैं बस में बैठ रहा था तभी एक बच्चे ने पुकारा, "हैलो, यहां आओ और हमारे साथ रहो.”
उस दिन मैं उस के साथ बैठने का निश्चय कर के आया था. अब वह उन्हें जौइन करने जा रहा था. मैं ने सोचा, 'उस से दोस्ती करने का मुझे मौका मिलने वाला है.'
लेकिन वह उन के साथ शामिल नहीं हुआ. वह खिड़की से बाहर झांकता रहा, जैसे उस ने बच्चे की पुकार नहीं सुनी हो.
“वह बड़ा उद्दंड है,” मैं ने उस आवाज लगाने वाले बच्चे को बड़बड़ाते हुए सुना जब मैं उस के पास से गुजरा.
मैं ने पूरी हिम्मत जुटाई और आशा की कि वह मुझे भी अनदेखा नहीं करेगा. मैं उस के पास गया. उस ने ऊपर नहीं देखा. मैं उस की बगल में बैठ गया और बोला, “हाय, कैसे हो?”
वह चौक गया था, क्योंकि वह विचारों में खोया हुआ था. वह हैरान दिख रहा था और कुछ कहने के लिए परेशान लग रहा था.
“तुम्हारा नाम क्या है ?” मैं ने पूछा.
“निओम,” उस ने कहा.
मैं ने सोचा, यह एक अजीब नाम है और मैं ने उस कहा, "मोइन."
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