चुपचाप बैठना जंपी बंदर के स्वभाव में ही नहीं था. हर समय पेड़ की एक टहनी से दूसरी टहनी पर जंप लगाने के कारण ही उस का नाम जंपी पड़ गया.
जिस पेड़ पर जंपी रहता था, एक दिन उसी पेड़ के नीचे खड़ी हो कर लूसी लोमड़ी स्कूल जाने के लिए बस का इंतजार कर रही थी.
स्कूल ड्रैस पहन और दो चोटियां बनवा कर लूसी अपना बैग लिए खड़ी थी. तभी अचानक जंपी को एक शरारत सूझी.
वह उलटा लटका और दूसरे हाथ से लूसी की चोटी को पकड़ने के लिए नीचे झुका. वह वहां तक नहीं पहुंच पाया. यह देख कर पेड़ पर बैठा कल्लू कौआ हंसने लगा.
जंपी को उस का इस तरह हंसना बहुत बुरा लगा. इस बार उस ने अपनी पूंछ का सहारा लिया. एक टहनी में पूंछ फंसा कर वह नीचे की तरफ झुका और लूसी की चोटी पकड़ने की फिर से कोशिश करने लगा.
लेकिन इस बार भी थोड़ी कसर रह गई और लूसी हाथ नहीं आई. जंपी ने कल्लू कौवे की तरफ देखा तो उसे मुंह छिपा कर हंसते हुए पाया.
‘कुछ भी हो, मैं इस बार उस की चोटी पकड़ कर ही रहूंगा,' मन ही मन यह सोचते हुए जंपी ने नीचे की तरफ जोर से डाइव लगाई.
उस के ऐसा करते ही टहनी अपनी जगह से टूट गई और जंपी टहनी के साथ मुंह के बल लूसी पर आ गिरा.
जंपी को इस तरह गिरते देख कर कल्लू को हंसी आ गई. उधर लूसी भी घबरा गई और नीचे गिर गई.
“हाय, मेरी नाक, ओह मेरी कमर,” जंपी चोट लगने से बिलबिला उठा. उधर बेचारी लूसी भी नीचे गिर कर घायल हो गई. उस की समझ में नहीं आया कि यह अचानक क्या हो गया.
“यह क्या बदतमीजी है? तुम ने मेरी पूरी ड्रैस खराब कर दी और मेरा चश्मा भी टूट गया,” कहते हुए लूसी को रोना आ गया.
“मुझे माफ कर दो, मेरी वजह से तुम्हें तकलीफ हुई,” जंपी ने अपने कान पकड़ते हुए लूसी से कहा और उसे औटो में बैठा कर हौस्पिटल ले गया.
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