सैली जंपी के कंधे पर बैठ कर पूरे जंगल में घूमा करती थी, लेकिन एक दिन सैली के साथ एक हादसा हो गया. जब सैली अपनी सहेली वैली के साथ पकड़म पकड़ाई का खेल खेल रही थी तो वैली ने सैली की पूंछ को पकड़ कर इतनी जोर से खींचा कि वह झटके से आधी टूट गई.
पूंछ टूटने पर सैली दर्द के कारण जोर से चीखी, “आई..ई... ई...मर...गई."
कुछ समय बाद सैली का पूंछ टूटने का दर्द तो जाता रहा, लेकिन वह बहुत दुखी थी. उस की खूबसूरत पूंछ जिसे वह बहुत प्यार करती थी, चली गई.
टूटी पूंछ के कारण उस का मन पेड़ के कोटर से बाहर निकलने को भी नहीं हो रहा था. उसे अपनी टूटी पूंछ के साथ बहुत शर्म महसूस हो रही थी. उसे लगता था कि उस की टूटी पूंछ देख कर हर कोई उस का मजाक उड़ाएगा.
यह देख कर जंपी ने उस का हौसला बढ़ाते हुए कहा, “अरे सैली, कोटर से बाहर तो निकला करो. कब तक कोटर में पड़ी रहोगी? बिना खाना खाए ऐसे तो तुम भूखों मर जाओगी."
“जंपी, भले ही मैं भूखों मर जाऊं, लेकिन टूटी पूंछ के साथ बाहर नहीं आने वाली. मुझे बहुत शर्म आती है."
"अरे सैली, जंगल में तो हम जानवरों के साथ ऐसे हादसे होते रहते हैं. कोई किसी की पूंछ तो कोई किसी की टांग तोड़ देता है, लेकिन इस से किसी की जान नहीं जाती. हमें तो आए दिन ऐसी घटनाओं का सामना करना पड़ता है."
लेकिन जंपी के लाख समझाने पर भी जब सैली अपने कोटर से बाहर आने को तैयार नहीं हुई, तब जंपी ने सैली के भोजन का बंदोबस्त किया. वह हमेशा उस के लिए उस की मनपसंद चीजें ले कर आता था.
सैली अपनी पूंछ टूटने से इतनी दुखी थी कि वह आधा खाना खाती और आधा फेंक देती. उस का दुख किसी प्रकार से भी कम न होता. अब जंपी यही सोचता रहता था कि वह उस का दुख कैसे करे?
तब जंपी को एक तरकीब सूझी. उस ने सोचा कि यदि सैली को खूब हंसाया जाए तो उस का दुख दूर हो जाएगा. अब वह सैली को हंसाने के तरीके ढूंढ़ने लगा. जैसे ही उसे एक तरीका ध्यान आया, वह खुशी से उछल पड़ा और खुद ‘खी... खी... खी...' कर के के हंसने लगा.
उस की हंसी सुन कर सैली कोटर से ही बोली, "अरे जंपी, इतनी जोर से 'खीखीखी' कर के क्यों हंस रहे हो?”
"सैली, मुझे एक बात याद आ गई. उस बात को याद करते ही मेरी हंसी छूट गई."
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