सुबह उठते ही चाय ! बच्चों के स्कूल के लिए लंच बॉक्स तैयार करना ! फिर पति के लिए ब्रेकफास्ट और लंच, फिर अंत में अपने लिए लंच। ये सब मात्र डेढ़-दो घंटे में करना होता है और उसके बाद ऑफिस के लिए मारामारी। ऑफिस में दिन भर खपने के बाद शाम को घर पहुंचते ही फिर वही चाय और खाने की चिंता ! कब रात हो जाती है, पता ही नहीं चलता। फिर सुबह की चिंता। यही मिसेज प्रतिभा की दिनचर्या है। दिनचर्या क्या, यही उनकी जिंदगी है। अपने लिए समय ही नहीं है और जो थोड़ा-बहुत समय मिलता भी है, वह मोबाइल के खाते में चला जाता है। अपने लिए समय न मिलने की यह समस्या अकेले मिस प्रतिभा जी की नहीं है, 'आधी दुनिया' की है, जहां अपने लिए समय निकालने की गुंजाइश ही नहीं है। ऐसा सिर्फ महिलाओं के साथ ही है, वरना पुरुषों एवं बच्चों को अपने लिए खूब समय मिलता है और वे इसका अपने तरीके से इस्तेमाल भी करते हैं। लेकिन महिलाओं के मामले में यह अपना समय या तो होता ही नहीं है या फिर होता है तो इतना कम कि उसके होने का अहसास तक नहीं होता।
मिसेज प्रतिभा तो कामकाजी हैं, लेकिन डॉली गृहिणी हैं। कामकाजी महिलाओं के लिए तब भी छुट्टी के दिन आते हैं, लेकिन गृहिणी के लिए कोई छुट्टी नहीं होती। वह सातों दिन, चौबीसों घंटे काम करती रहती है। सबको अपने-अपने काम पर भेजने के बाद लगता है कि सारा समय अब उसका ही है, मगर उनके जाते ही दूसरे काम शुरू हो जाते हैं, जिनका कोई अंत नहीं। अपने लिए जो समय हो सकता था, वह कब हाथ से फिसल जाता है, पता ही नहीं चलता।
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इस आदत को बदल डालें
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