सनातन संस्कृति में अनेक ऐसे व्रत-त्योहार हैं, जो अपने परिवार और जीवन-साथी की सुख-समृद्धि की मंगलकामना के लिए रखे जाते हैं। इन्हीं में से एक है - 'हरतालिका तीज', जो करवा चौथ की तरह ही है। हरतालिका तीज महिलाओं के लिए आपसी प्रेम, विश्वास और आस्था का अनोखा उत्सव है। अखंड सुखद दांपत्य की कामना का यह पर्व भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है, जो भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन की कथा पर आधारित है। इस दिन कुंवारी लड़कियां शिव-पार्वती की पूजा करके अपने अच्छे वैवाहिक जीवन की कामना करती हैं तो सुहागिन महिलाएं घर-परिवार की सुख-समृद्धि की कामना करती हैं।
हरतालिका दो शब्दों से मिलकर बना है - पहला 'हर', जिसका अर्थ है 'हरण करना' और दूसरा 'तालिका', जिसका अर्थ है 'सखी'। असल में, कहानी यह है कि माता पार्वती की सहेलियां उन्हें उनके पिता के घर से हरण करके घने जंगल में ले गईं। वहां माता पार्वती ने कठोर तपस्या की और भगवान शिव को पति रूप में प्राप्त किया। हरतालिका व्रत को निर्जल रहकर करने का विधान है। वहीं व्रत के खत्म होने यानी रात में भगवान शिव और माता पार्वती के गीतों पर नृत्य किया जाता है। इस अवसर पर महिलाएं पूर्ण श्रृंगार करके सुंदर वस्त्र और आभूषण पहनकर लोक गीत गाती हैं और झूलती हैं। रिश्तों के लगाव का यह पारंपरिक पर्व जीवन को नए उमंग-उल्लास और प्रेम के रंग में रंग देता है। कई महिलाएं स्वास्थ्य कारणों झूला से इस व्रत को जल या फलाहार के साथ भी रखती हैं, लेकिन पूजा विधि और मनोभावना में कोई कमी नहीं आने देतीं। इसके अलावा हरतालिका तीज का व्रत एक ऐसा अवसर भी है, जब महिलाएं अपने परिवार एवं समाज के साथ जुड़ती हैं और अपनी संस्कृति तथा परंपरा का पालन करती हैं।
कैसे होंगे शिव-पार्वती प्रसन्न
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