जीवन में दोस्ती का बहुत महत्व है, खासकर बच्चों के लिए। इस समय घर-परिवार से ज्यादा दोस्तों की बात मायने रखती है। 4-5 साल की उम्र से ही बच्चे दूसरे बच्चों के साथ खेलना और दोस्ती करना शुरू कर देते हैं। हालांकि पेरेंट्स इस बात को ले कर हमेशा कन्फ्यूज रहते हैं। पहले वे तंग आ कर बच्चों को दूसरे बच्चों के साथ खेलने भेजते हैं। फिर जब बच्चा दोस्त बना लेता है। और रोज खेलने का रुटीन फॉलो करने लगता है, तो पेरेंट्स परेशान हो कर वह गंदा बच्चा है, उसके साथ मत खेलो, वह तुम्हें अपने टॉएज खेलने को नहीं देती, इसलिए उसके साथ ज्यादा दोस्ती मत करो जैसे जुमले कहना शुरू कर देते हैं। और यह सिलसिला जीवनभर चलता रहता है। हालत यह हो जाती है कि बच्चा अपने दोस्तों को पेरेंट्स से छुपाने लगता है। उसे लगता है कि मम्मी-पापा हमारे दोस्तों को ले कर बहुत ज्यादा जजमेंटल हैं। उनके बारे में गलत धारणा बना लेते हैं। इसलिए अपने दोस्तों के बारे में इनसे बात करने का क्या फायदा!
पेरेंट्स और बच्चों के बीच की यह तनातनी कई बार बच्चों के लिए नुकसानदायक हो जाती है। गलत दोस्ती के चक्कर में ऐसे ही बच्चे पड़ते हैं, जिनके पेरेंट्स उन्हें दोस्तों को ले कर ताने देते हैं या उन्हें ले दोस्तों के चक्कर में पड़ने से रोकते हैं। बतौर पेरेंट्स आपको इस बात पर नजर जरूर रखनी चाहिए कि आपके बच्चों की दोस्ती किस तरह के बच्चों के साथ है। बच्चों को राय जरूर दें, पर अपनी सलाह उन पर ना थोपें, यह उन्हें आमतौर पर पसंद नहीं आता।
बच्चों के रोल मॉडल बनें
कुछ बातें बच्चों को कह कर समझाने की जरूरत ही नहीं पड़ती। पेरेंट्स के व्यवहार और बातचीत से वे "बहुत `सी बातें सीखते हैं। इसलिए आप बच्चों के सामने दोस्ती का अच्छा उदाहरण पेश करें। उन्हें यह नहीं लगना चाहिए कि दोस्ती का मतलब खाओ, पिओ, ऐश करो होता है। सच्ची दोस्ती वह है, जो मुसीबत में एक-दूसरे के काम आती है। बच्चों को यह समझाएं कि दोस्ती अपनी जगह है और परिवार अपनी जगह। अगर आप परिवार से ज्यादा दोस्तों को तरजीह देंगे, तो बच्चे भी वैसा ही करेंगे। उनके दिमाग में शुरू से ही यह बात डालनी जरूरी है कि दोस्ती के चक्कर में फैमिली को इग्नोर करना या फिर परिवार को कमतर आंकना अच्छी आदतें नहीं हैं।
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