अपने मोबाइल की स्क्रीन पर घर के लैंडलाइन का नंबर देखते ही अवनि • ने झट से फोन उठाया। हेलो कहते ही उधर से मेड की आवाज सुनायी दी, “दीदी, बाबू जी का बुखार बहुत बढ़ गया है। मैंने खाना खिला कर दवा दे दी थी, पर बुखार उतरा नहीं।"
वह हड़बड़ा उठी। फिर जल्दी-जल्दी अमित को फोन किया, “अमित, बाबू जी का बुखार कम नहीं हो रहा है। प्लीज, आज तुम घर चले जाओ ना। आज मेरी एक इंपॉर्टेंट प्रेजेंटेशन है। मैं उसके बाद चली जाऊंगी। वैसे भी कई दिनों से जल्दी घर चली जा रही हूं, वर्कप्लेस पर बुरा असर पड़ता है। सर को क्या जवाब दूं। वे भी नाराज हो सकते हैं।"
“ओह हो अवनि !" झल्ला उठा अमित, "तुम्हें मालूम है, मैं एक जरूरी प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हूं। मुझे ऑफिस में ज्यादा समय देना है और तुम हो कि मुझे जल्दी निकलने को बोल रही हो। पूरी टीम को मैंने काम करने के लिए रोक रखा है, मैं कैसे चला जाऊं? तुम्हें जैसे मैनेज करना है करो," कह कर फोन काट दिया अमित ने।
अवनि का गुस्सा फूट पड़ा। सारा गुस्सा बड़बड़ाते हुए निकाल रही थी, "तुम्हारा काम काम है और मेरा कुछ नहीं? हम औरतों का कैरिअर मायने नहीं रखता? घर-दफ्तर दोनों जगह हम ही सामंजस्य बिठाते हैं। तुम मर्दों की तो कोई जिम्मेदारी होती ही नहीं?" वह सिर पकड़ कर बैठ गयी।
थोड़ी देर में खुद को शांत कर अपने बॉस के केबिन में गयी।
उसे देखते ही सक्सेना साहब बोल उठे, “आओ अवनि, मैं तुम्हें ही बुलाने जा रहा था। आज की तुम्हारी प्रेजेंटेशन काफी मायने रखेगी। नया क्लाइंट है, उसे इंप्रेस करना होगा, बिलकुल परफेक्शन के साथ !"
“सॉरी सर, मैं अपनी प्रेजेंटेशन माया को समझा दे रही हूं, वह हैंडल कर लेगी। मुझे थोड़ा जल्दी घर जाना है, बाबू जी की तबीयत ठीक नहीं।"
‘‘फिर से?'' सक्सेना साहब के तेवर कड़े हो गए।
“सर प्लीज, मेरी मजबूरी है, " रोआंसी हो गयी अवनि।
“देखो अवनि, तुम्हारी काबिलियत देखते मैं तुम्हें कुछ नहीं कहता। मैं एक काबिल एंप्लॉई को खोना नहीं चाहता। लगातार कई दिनों से ऐसा चल रहा है। मैं ऊपर क्या जवाब दूंगा।"
“सर प्लीज, मैं जल्दी ही कुछ सोचती हूं।"
"ओके, पर क्लाइंट नया है। तुम माया को सारा डिटेल समझा कर जा सकती हो।"
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