इस पुस्तक को उठाते समय आपके मन में संभवतः यही पहला सवाल उठा होगा कि एक इनसान, जो कि बिना अंगों के पैदा हुआ हो, वह ईश्वर का हाथ व पैर कैसे बन सकता है?
मैं मानता हूँ, कृपया हाथ नीचे कर लें कि यह अपने आप में बहुत अच्छा सवाल है। जब मैं विकसित हो रहा था, तब मैं भी खुद से यही सवाल अनगिनत बार करता रहता था। बिना अंगोंवाले इनसान को धरती पर जीवित रखकर ईश्वर का कौन सा उद्देश्य पूरा हो सकता है?
तो आप कल्पना कर सकते हैं कि इस सवाल का जवाब मुझे अविला की संत टेरेसा के ऊपर के कथन से मिला और इसका मुझ पर काफी गहरा असर पड़ा। उनके शब्दों ने मेरी जिज्ञासाओं को शांत किया और मुझे प्रेरणादायक वक्ता एवं ईसाई रोल मॉडल बनने के मेरे उद्देश्य को पूरा करने के क्रम में तमाम कदमों की दिशा तय की, ताकि मैं आस्था से जुड़ी बातें दूसरों से साझा कर सकूँ। मैं सबकुछ नहीं कर सकता, लेकिन मैं इतना जरूर कर सकता हूँ कि लोगों को विवश करूँ कि वे ईश्वर का घर भर दें। ईसाई होने के नाते हम सभी का यह फर्ज बनता है, हम सभी का।
इस सच्चाई की पुष्टि कि हम कौन हैं, इसी से तय होती है कि हम दैनिक जीवन में कैसे रहते हैं? अगर आप दूसरों पर अपना प्रभाव छोड़ना चाहते हैं तो सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह कि आपको उन सिद्धांतों, विशिष्टताओं और विश्वास के ज्वलंत उदाहरण के तौर पर नजर आना होगा, जिनकी आप वकालत करते हैं। ईसाइयों के लिए खासतौर पर यह सच है। अपनी आस्थाओं को साझा करने का सबसे अच्छा तरीका यही है कि आप उनको किसी कीमत पर न छोड़ें, चाहे आप कितने ही दबाव में हों, यहाँ तक कि जब चुनौतियाँ बढ़ें और एक के बाद एक कठिनाई आप पर हावी होने लगे, उस दौरान भी आपका मन न डिगे।
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