तोरिया की खली दुधारू पशुओं के आहार के रूप में इस्तेमाल की जाती है. साथ ही साथ उद्योगों में भी कच्चे माल के रूप में इस का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे साबुन, लुब्रिकेंट औयल, वार्निश आदि में सरसों के दाने से तेल निकालने के बाद जो खली बचती है, वह पशुओं के लिए प्रोटीन 40-50 फीसदी का सब से खास हिस्सा है.
भारत में तिलहनी फसलों का साल 2013-14 में रकबे के लिहाज से तकरीबन 285.25 लाख हेक्टेयर में बोआई की जाती है, जिस का उत्पादन 32.88 मिलियन टन होता है और उत्पादकता 1153 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर है.
रबी के तिलहनी फसलों में तोरिया ऐसी फसल है, जिस की खेती सिंचित व असिंचित दोनों दशाओं में आसानी से की जा सकती है. तोरिया के पौधे लगभग आधा मीटर के होते हैं, तोरिया नकदी फसल के रूप में खरीफ व रबी के मध्य में बोई जाती है. इस की खेती कर के अतिरिक्त लाभ मिलता है.
मिट्टी व खेत की तैयारी
तोरिया की खेती के लिए बलुईदोमट मिट्टी सब से अधिक मुनासिब होती है. वैसे, रेतीली भूमि से ले कर मटियार दोमट मिट्टयों में तोरिया उगाई जा सकती है. खेत की तैयारी के लिए खरीफ फसल काटने के बाद पिछली फसल के डंठलों के साथ ही खेत में मौजूद खरपतवार को इकट्ठा कर लें और फिर मिट्टी पलटने वाले हल से और 2 से 3 जुताइयां देशी हल से कर के पाटा दे कर मिट्टी भुरभुरी बना लेना चाहिए. बीज के अच्छे जमाव के लिए खेत में मुनासिब मात्रा में नमी होनी चाहिए.
बीज की मात्रा व उपचार
तोरिया/लाही का बीज 4-5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से इस्तेमाल करना चाहिए. बीज को 2.5 ग्राम वीटावैक्स या बेनलेट प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर के ही बोएं.
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