इस का तेल हृदय रोगियों के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है. सूरजमुखी के तेल की भी मांग बहुत है. सूरजमुखी का उत्पादन यदि समूहों में किया जाए, तो उत्पादन मूल्य बहुत बढ़िया मिलने की संभावना रहती है.
भूमि
सूरजमुखी की खेती के लिए गहरी दोमट भूमि अच्छी मानी गई है. बीज के जमाव के लिए उचित नमी होना आवश्यक है. सिंचाई का उचित प्रबंध होना चाहिए और जल निकास की अच्छी एवं उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए.
बोने का समय व बीज दर
वैसे तो इस फसल को खरीफ, रबी और जायद तीनों मौसम में आसानी से बोया जा सकता है और अच्छा उत्पादन भी प्राप्त किया जा सकता है, परंतु जायद में ज्यादातर खेत खाली छोड़े जाते हैं, तो उस समय यह फसल और भी लाभकारी साबित होगी.
यह फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. जायद में मार्च का प्रथम पखवारा बोआई के लिए अच्छा होता है. प्रति हेक्टेयर 10 से 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है, बोने से पहले प्रति किलोग्राम बीज को 2 से 3 ग्राम थीरम अथवा कार्बंडाजिम से शोधित कर लेना चाहिए. इसे 60-20 सैंटीमीटर की दूरी पर बोना चाहिए. बीज को 3 से 4 सैंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए, जिस से पौधों में आपस की दूरी 20 सैंटीमीटर हो जाए.
उन्नत किस्में
मौडर्न ड्वार्फ के केबीएसएस-1 सनराइज सेलैक्शन, संजीव-95, आईसीआई- 36, एसएच-3332 इत्यादि.
उर्वरक
60 से 80 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश और 150 से 200 किलोग्राम जिप्सम प्रति हेक्टेयर की दर से देना चाहिए.
सिंचाई
अच्छी पैदावार के लिए 6 से 8 सिंचाइयों की आवश्यकता पड़ती है. पहली सिंचाई बोआई के 15 से 20 दिन बाद करनी चाहिए. बाकी सिंचाइयां 10 से 12 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. दाना बनते समय हलकी सिंचाई करनी चाहिए.
खरपतवार नियंत्रण और मिट्टी चढ़ाना
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.