गरमियों के लिए बोई जाने वाली सब्जियों के नजरिए से फरवरी का महीना सब से मुफीद माना गया है. इस के साथ ही बागबानी और फूलों की खेती सहित पशुपालकों, मत्स्यपालकों, मधुमक्खीपालकों और मुरगीपालन से जुड़े लोगों को विशेष एहतियात बरतने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में यह कहा जा सकता है कि किसानों को फरवरी में अपने खेतीबारी से जुड़े कामों को ले कर खासा सतर्क रहने की जरूरत है.
गेहूं की खेती करने वाले किसान अपने गेहूं की फसल की सिंचाई 27 से 30 दिन के अंतर पर करते रहें.
फरवरी महीने में ठंड कम होने लगती है. ऐसे में फसल में पीला रतुआ या धारीदार रतुआ, भूरा रतुआ या पत्तों का रतुआ व काला या तने का रतुआ रोग का प्रकोप बढ़ने लगता है.
अगर गेहूं की फसल पर रंगदार धब्बे पत्तों व तनों पर नजर आते हैं, तो अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र में जा कर या फोन पर बात कर के इस का उचित निदान करें.
शरदकालीन मक्का और जौ की खेती करने वाले किसान अपनी फसल की जरूरत के मुताबिक सिंचाई कर सकते हैं. कीट व रोगों का प्रकोप दिखाई पड़ने पर प्रभावित पौधों के लक्षण दिखा कर कृषि विज्ञान केंद्र से सलाह ले कर उचित प्रबंधन करें.
मसूर, मटर व चने में फली छेदक का प्रकोप दिखाई देने पर अपने कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक फसल सुरक्षा से संपर्क करें.
जिन किसानों की सरसों व पीली सरसों पकने वाली हो, वे फरवरी माह के शुरू में हलकी सिंचाई करें. साथ ही, फलियां पीली पड़ने पर फसल की कटाई समय से करें, जिस से दाने बिखरते नहीं हैं.
गरमियों में सब्जी उत्पादन के लिए तोरई की बोआई फरवरी महीने में की जा सकती है. इस के लिए जल निकास वाली बलुई दोमट या दोमट मिट्टी जीवांश वाली मुफीद मानी जाती है. इस की उन्नत किस्मों में कल्याणपुर हरी चिकनी, राजेंद्र तोरई 1, पंत चिकनी तोरई 1, पूसा स्नेहा, काशी दिव्या, स्वर्णप्रभा वगैरह शामिल हैं.
फरवरी में की जाने वाली सब्जियों की खेती में भिंडी की खेती प्रमुख स्थान रखती है. इस की बोआई फरवरी के अंतिम सप्ताह तक जरूर कर दें.
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कचरे के पहाड़ों पर खेती कमाई की तकनीक
वर्तमान में कचरा एक गंभीर वैश्विक समस्या बन कर उभरा है. भारत की बात करें, तो साल 2023 में पर्यावरण की स्थिति पर जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक, देश में प्रतिदिन तकरीबन डेढ़ करोड़ टन ठोस कचरा पैदा हो रहा है, जिस में से केवल एकतिहाई से भी कम कचरे का ठीक से निष्पादन हो पाता है. बचे कचरे को खुली जगहों पर ढेर लगाते हैं, जिसे कचरे की लैंडफिलिंग कहते हैं.
सर्दी की फसल शलजम
कम समय में तैयार होने वाली फसल शलजम है. इसे खास देखभाल की जरूरत नहीं होती है और किसान को क मुनाफा भी ज्यादा मिलता है. शलजम जड़ वाली हरी फसल है. इसे ठंडे मौसम में हरी सब्जी के रूप उगाया व इस्तेमाल किया जाता है. शलजम का बड़ा साइज होने पर इस का अचार भी बनाया जाता है.
राममूर्ति मिश्र : वकालत का पेशा छोड़ जैविक खेती से तरक्की करता किसान
हाल के सालों में किसानों ने अंधाधुंध रासायनिक खादों और कीटनाशकों का प्रयोग कर धरती का खूब दोहन किया है. जमीन से अत्यधिक उत्पादन लेने की होड़ के चलते खेतों की उत्पादन कूवत लगातार घट रही है, क्योंकि रसायनों के अंधाधुंध प्रयोग के चलते मिट्टी में कार्बांश की मात्र बेहद कम हो गई है, वहीं सेहत के नजरिए से भी रासायनिक उर्वरकों से पैदा किए जाने वाले अनाज और फलसब्जियां नुकसानदेह साबित हो रहे हैं.
करें पपीते की वैज्ञानिक खेती
पपीता एक महत्त्वपूर्ण फल है. हमारे देश में इस का उत्पादन पूरे साल किया जा सकता है. पपीते की खेती के लिए मुख्य रूप से जाना जाने वाला प्रदेश झारखंड है. यहां उचित जलवायु मिलने के कारण पपीते की अनेक किस्में तैयार की गई हैं.
दिसंबर महीने के जरुरी काम
आमतौर पर किसान नवंबर महीने में ही गेहूं की बोआई का काम खत्म कर देते हैं, मगर किसी वजह से गेहूं की बोआई न हो पाई हो, तो उसे दिसंबर महीने के दूसरे हफ्ते तक जरूर निबटा दें.
चने की खेती और उपज बढाने के तरीके
भारत में बड़े पैमाने पर चने की खेती होती है. चना दलहनी फसल है. यह फसल प्रोटीन, फाइबर और विभिन्न विटामिनों के साथसाथ मिनरलों का स्त्रोत होती है, जो इसे एक पौष्टिक आहार बनाती है.
रोटावेटर से जुताई
आजकल खेती में नएनए यंत्र आ रहे हैं. रोटावेटर ट्रैक्टर से चलने वाला जुताई का एक खास यंत्र है, जो दूसरे यंत्रों की 4-5 जुताई के बराबर अपनी एक ही जुताई से खेत को भुरभरा बना कर खेती योग्य बना देता है.
आलू खुदाई करने वाला खालसा पोटैटो डिगर
खालसा डिगर आवश्यक जनशक्ति और समय बचाता है. इस डिगर को जड़ वाली फसलों की खुदाई के लिए डिजाइन किया गया है. इस का गियर बौक्स में गुणवत्तापूर्ण पुरजों का इस्तेमाल किया गया है, जो लंबे समय तक साथ देने का वादा करते हैं.
कृषि एवं कौशल विकास से ही आत्मनिर्भर भारत बन सकेगा
बातचीत : गौतम टेंटवाल, कौशल विकास एवं रोजगार मंत्री, मध्य प्रदेश
गेहूं में खरपतवार नियंत्रण के प्रभावी उपाय
खरपतवार ऐसे पौधों को कहते हैं, जो बिना बोआई के ही खेतों में उग आते हैं और बोई गई फसलों को कई तरह से नुकसान पहुंचाते हैं. मुख्यतः खरपतवार फसलीय पौधों से पोषक तत्त्व, नमी, स्थान यानी जगह और रोशनी के लिए होड़ करते हैं. इस से फसल के उत्पादन में कमी होती है.