छठ पूजा का लोकरंग
Sadhana Path|October 2022
छठ पूजा केवल एक पर्व नहीं है बल्कि इसे महापर्व का दर्जा प्राप्त है। इस पर्व के साथ करोड़ो हिन्दुओं की आस्था जुड़ी हुई है और हो भी क्यों न भगवान सूर्य की उपासना से जुड़े इस महा पर्व की महिमा ही ऐसी है।
लक्ष्मी कुमारी
छठ पूजा का लोकरंग

दीपावली के ठीक छह दिन बाद मनाए जाने वाले पर्व छठ का भारतीय संस्कृति में व्यापक महत्त्व है। हमारे देश में छठ पर्व मनाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। सूर्योपासना का यह पर्व बिहार में घर-घर में मनाया जाता है। इसके अलावा, उत्तर प्रदेश, उत्तरांचल और पूर्वोत्तरी राज्यों में भी इस पर्व को लेकर खासा उत्साह रहता है। हिंदुओं द्वारा मनाए जाने वाले इस पर्व को इस्लाम व अन्य धर्मावलंबी भी मनाते देखे गए हैं। हमारे यहां मान्यता है कि सूर्य की शक्तियों का मुख्य स्रोत उनकी पत्नियां उषा और प्रत्यूषा हैं। छठ में सूर्य के साथ-साथ उनकी दोनों शक्तियों की संयुक्त आराधना होती है। प्रातःकाल में सूर्य की पहली किरण (उषा) और संध्याकाल में सूर्य की अंतिम किरण (प्रत्यूषा) को अर्घ्य देकर दोनों को नमन किया जाता है।

लोककथाएं

ऐसी मान्यता है कि चौदह वर्ष की वनवास की अवधि पूरी करने के पश्चात् भगवान राम, जानकी और लक्ष्मण के साथ कार्तिक अमावस्या के दिन अयोध्या लौटे थे उसी दिन से दीपावली मनाई जाती है। अपने प्रिय राजा राम और रानी सीता के आने के उपलक्ष्य में राज्य भर में घी के दिये जलाए गए थे। राम के राज्याभिषेक के पश्चात् राम राज्य की परिकल्पना को ध्यान में रखकर राम और सीता ने कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास रखकर प्रत्यक्ष देव भगवान सूर्य की आराधना की और सप्तमी को पूर्ण किया। पवित्र सरयू तट पर राम-सीता के इस अनुष्ठान से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने उन्हें आशीर्वाद दिया था। तब से छठ पर्व इस अंचल विशेष में लोकप्रिय हो गया।

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