ग्लानि से उभारा - स्वामी आनंद ध्रुव
ओशो ने जीवन, प्रेम और सेक्स को जिस दृष्टिकोण से देखा और प्रस्तुत किया वह अतुलनीय है। अभी तक धर्म या अध्यात्म से जुड़े लोगों ने प्रेम/सेक्स को अछूत | विषय मान कर छोड़ दिया था। इस विषय पर लोग या तो निंदा करते थे या फिर उपेक्षा करते थे। इतिहास में पहली बार इन विषयों की ओशो ने न तो निंदा की, न उपेक्षा की बल्कि डंके की चोट पर अपना विशद दृष्टिकोण रखा। इसका असर यह हुआ कि जो युवा लोग स्वाभाविक रूप से प्रेम और सेक्स के प्रति आकर्षित होते थे, अपने को धर्म या अध्यात्म के योग्य नहीं समझते थे, उनके मन में एक ग्लानि रहती थी, वे अपने को अयोग्य समझते थे। वे इन स्वाभाविक वृत्तियों को पाप समझते थे। 'लंगोट के पक्के' होना जरूरी समझते थे। इस गलतफहमी को ओशो ने दूर किया और उन लोगों को जीवन ऊर्जा, सेक्स ऊर्जा को रूपान्तरित करने और ऊर्ध्वगामी बनाने का आह्वान किया। उस युवा वर्ग में आस जगी, जो अभी तक स्वयं अपने को अछूत मानता था, पापी मानता था, ग्लानि से भरा था। ओशो ने मिट्टी को सोना बनाने की कला सिखाई, कोयले को हीरा बनाने की कला सिखाई।
सेक्स को निंदा से मुक्त किया- ओशो करुणेश
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