
नववर्ष का अभ्युदय होते ही मानव जीवन एक सृजनात्मक सोच से भर जाता है। मानव मात्र एक नई आशा, नई उमंगों के साथ पुनः जीवन को नए रूप में ढालने की कोशिश करता है। सार्थक परिवर्तन का यह पर्व रोम-रोम में नई ऊर्जा, ताजगी व अनकही सुखद मस्ती से सराबोर कर देता है। उम्र कोई भी हो चाहे बूढ़ा या जवान दिसंबर के अंत होते ही सूर्योदय की नई किरणों की तरह साथ में नव आलोक के साथ झांकने वाला नया वर्ष भी सुखद आशा में विभोर या प्रतीक्षारत मग्न हो जाता है। ये उत्साह साल के अंत तक थोड़ा थक सा जाता है और यही एक रस जीता हुआ तन-मन नववर्ष के आगमन पर पुनर्जागरण के साथ ताकतवर व कुछ और संकल्पित ऊर्जा के साथ परम वृद्ध दिखने लगता है।
हमारे मानव जीवन को पुनर्जागृत करने के लिए नए साल की नई भोर के साथ कुछ जागरूक प्रतिज्ञा जीवन कल्याण के लिए लेनी चाहिए, जिससे ये शुभारंभ हमारे जीवन को नई दिशा, नई रोशनी व नई राह दे। जैसा कि एक आध्यात्मिक संदेश है- 'हम सुधरेंगे जग सुधरेगा' के सिद्धांत पर नए संकल्प लेने चाहिए। ये बात अलग है कि हमारे द्वारा किए गए वचनबद्ध संकल्प कुछ तो भाग खड़े होते हैं। हम अपनी आदतों के शिकार होकर वही करते हैं, जो हम करते रहते थे, लेकिन इसके लिए संकल्प दोषी नहीं होते हैं। दोषी होती हैं संकल्प लेने वाले की बुरी आदतें व उनका परिस्थितियों से घायल, आवारा मन और आंतरिक आत्मशक्ति व लगन की कमी।
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