![नाथों के नाथ भगवान शिव का मंदिर - केदारनाथ मन्दिर नाथों के नाथ भगवान शिव का मंदिर - केदारनाथ मन्दिर](https://cdn.magzter.com/Sadhana Path/1675663598/articles/FjYXuSjiZ1675774374539/1675774659079.jpg)
भगवान शंकर कामनाओं की पूर्ति करने वाले महादेव शिव शंकर हैं। भगवान शिव की पूजा अर्चना, अभिषेक और उपासना की प्राचीनता सर्वमान्य है। जो इनके 16 सोमवार के व्रत, भक्ति-भावना के साथ रखता है, उसकी कामना कभी अधूरी नहीं रहती है। शिव पुराण में उल्लेख किया गया है कि श्रावण मास में किए गए पूजन और जल धाराओं से न केवल भगवान शिव की कृपा होती है, बल्कि साधक पर मां गौरी, गणेश और लक्ष्मी की कृपा भी बनी रहती है। भगवान शिव शुद्ध, सनातन, परब्रह्म हैं। उनकी उपासना परम लाभ के लिए ही या उनका पुनीत प्रेम प्राप्त करने के लिए ही करनी चाहिए। भगवान शंकर की शरण लेने से कर्म शुभ और निष्काम हो जाएंगे, जिससे आप ही सांसारिक कष्टों का नाश हो जाएगा। भगवान शिव की उपासना और साधना की प्राचीनता, प्रचुरता और चमत्कार सर्वमान्य है। देवताओं के अलावा दानवों में भी असुरराज शिव भक्त रावण, हिरण्याक्ष, हिरण्यकश्यप, लवणासुर, भस्मासुर, गजासुर, बाणासुर आदि राक्षसों और दानवों ने भी, देवाधिदेव भगवान शिव की आराधना कर, उनसे अपना अभ्युदय किया।
कथा
इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना का इतिहास संक्षेप में यह है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे। उनकी आराधना से प्रसन्न होकर भगवान शंकर प्रकट हुए और उनकी प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया। यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है। पंचकेदार की कथा ऐसी मानी जाती है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के में पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे से भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उन लोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे।
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![देश-विदेश में बसंत पंचमी के विभिन्न रंग देश-विदेश में बसंत पंचमी के विभिन्न रंग](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/176/1987985/gV-FyTk9x1739190779440/1739190952868.jpg)
देश-विदेश में बसंत पंचमी के विभिन्न रंग
विविधता में एकता वाले हमारे इस देश में कई पर्व-त्योहार मनाए जाते हैं। हालांकि यहां विभिन्न क्षेत्रों में त्योहार मनाने के ढंग अलग होते हैं, पर सभी त्योहारों के पीछे उद्देश्य एक ही होता है अपने आराध्य देवी-देवता की पूजा-आराधना कर उन्हें प्रसन्न करना तथा हर्षोल्लास से एक साथ मिलकर अपनी खुशियों को बढ़ाना।
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बसंतोत्सव का महत्त्व
बसंत ऋतु एक ऐसी ऋतु है जो अपने साथ प्राकृतिक सौंदर्य हीं नहीं लाती बल्कि मनुष्य के मन में उमंग और हर्षोल्लास भी लाती है। ऋतुओं के राजा बसंत के साथ और क्या-क्या जुड़ा है ? जानिए इस लेख से।
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आदर्श प्रेम के प्रतीक देवी-देवता
यूं तो हर इंसान का प्रेम अपने आप में सम्पूर्ण व अनुकरणीय होता है परन्तु कुछ लोगों का प्रेम इतिहास के पन्नों पर सदा के लिए स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो जाता है। आइये नमन करें कुछ ऐसे ही प्रेम के प्रतीकों को।
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आपकी गृहस्थी में सेंध लगा सकती है ऐसी अपेक्षायें?
अपने पारिवारिक जीवन की चर्चा या कोई उलझन कभी किसी पुरुष सहयोगी के सामने बयां न करें अन्यथा वह सहानुभूति दर्शाकर सहयोग देने की पेशकश करेगा और अंततः आपके दुख, जो दुख न होकर सिर्फ क्षणिक क्रोध था, को हवा देगा।
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कई लोगों को घूमने का शौक तो होता है, पर वह सफर में होने वाली मोशन, सिकनेस के डर से कहीं बाहर नहीं निकल पाते। ऐसे में परेशान होने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि आपके किचन में ही इनके समाधान मौजूद है।
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विद्या की देवी सरस्वती की पूजा का पर्व बसंत पंचमी पवित्र हिन्दू त्योहार है। एक इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है।
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महिलाओं में कैंसर के सामान्य प्रकार
अभी तक ज्यादातर मामलों में कैंसर को आनुवंशिक माना गया था | नए अनुसंधानों में पता चला है कि कैंसर के कारण काफी हद तक अस्वस्थ जीवनशैली और असंतुलित आहार में होते हैं।
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अखरोट खाने में जितना स्वादिष्ट होता है, उतना ही स्वास्थ्य के लिए फ़ायदेमंद भी होता है। आखिर अखरोट खाने के क्या हैं फ़ायदे, यह किस तरह से और किस समय खाना चाहिए, आइए जानें-
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इन स्वास्थ्यवर्धक टिप्स से बनाएं सफर सुहाना
सफर के दौरान खानपान का ध्यान रखना बेहद जरूरी है क्योंकि सफर का लुत्फ तभी लिया जा सकता है जब आपका स्वास्थ्य अच्छा हो।
![नूतन उत्साह का प्रतीक बसंत पंचमी नूतन उत्साह का प्रतीक बसंत पंचमी](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/176/1987985/-0nOoUj1E1739190651994/1739190760632.jpg)
नूतन उत्साह का प्रतीक बसंत पंचमी
प्रकृति में बसंत के आगमन की टोह मन में एक नए उल्लास, आशा एवं अचानक ही लगता है कि मन प्रसन्न एवं प्रफुल्लित हो उठा है। परिवर्तन में भावों की पावन धाराएं बहने लगी हैं और हमारे तन, मन और व्यवहार में सुंदर एवं सुमधुर अभिव्यक्तियां झलकने लगती हैं। कहते हैं, प्रकृति जब मुस्कुराने लगती है, तब उसके अंतर्गत आने वाले सभी जड़-जीव एवं मनुष्यों में मुस्कुराहट फैल जाती है।