लक्षण
खांसी का दौरा किसी समय भी प्रारंभ हो सकता है। कुछ खाते-पीते समय श्वास मार्ग अवरुद्ध होने पर तीव्र रूप में खांसी शुरू होती है। खांसते-खांसते रोगी परेशान हो जाता है जब तक बलगम (कफ) न निकले खांसी चलती रहती है। चेहरा लाल हो जाता है। खांसने से पेट में दर्द भी होने लगता है।
खांसी के प्रकार
सूखी व तर खांसी
सोंठ, पीपलामूल, पीपल, बहेड़ा की छाल बराबर-बराबर लेकर चूर्ण बना लें फिर शहद में मिलाकर चटाएं।
कफ की खांसी
अदरक के रस में शहद मिलाकर चाटें। अगर कफ गिरता हो तो एक छुहारे की गुठली निकालकर उसमें 3 लौंग, 3 काली मिर्च भरकर अरण्ड के पत्ते में लपेटकर आग में जलाएं, फिर उसकी राख शहद में मिलाकर चाटें।
हिचकी की दवा
बकरी के दूध में सोंठ मिलाकर पिलाएं या आम के पत्ते हुक्के में रखकर पिलाएं या शहद चटाएं।
खांसी-हिचकी की दवा
काली मिर्च, अजवायन, सोंठ, कांकड़ासिंगी, पीपल, पोहकर, मूल जायफल- इन सबको बराबर-बराबर लेकर कूट-छानकर शहद में चटाएं या काली मिर्च को चूर्ण बनाकर उसमें उतनी ही मिश्री मिलाकर 2 रत्ती शहद में मिलाकर चाटें।
सांस की खांसी
तालिस पत्र 1 तोला, छोटी इलायची 1 तोला, काली मिर्च 2 तोला, सोंठ 2 तोला, तेजपत्र 2 तोला, वंशलोचन 4 तोला, नीले रंग का पीपल 4 तोला, मिश्री 1 छटांक- इन सबको बारीक पीसकर घी या मक्खन के साथ खाएं।
खांसी या पसली का दर्द
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तुलसी से दूर करें वास्तुदोष
हिन्दू धर्म में तुलसी का पौधा हर घर-आंगन की शोभा है। तुलसी सिर्फ हमारे घर की शोभा ही नहीं बल्कि शुभ फलदायी भी है। कैसे, जानें इस लेख से।
क्यों हुआ तुलसी का विवाह?
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हिन्दू धर्म में पूर्णिमा का महत्त्वपूर्ण स्थान है। बारह पूर्णिमाओं में कार्तिक पूर्णिमा का महत्त्व सर्वाधिक है। मान्यता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पुण्य फल की प्राप्ति होती है।
सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसका नाम हैं सत्यः नानक
सिरवों के प्रथम गुरु थे नानक | अंधविश्वास एवं आडंबरों के विरोधी गुरुनानक का प्रकाश उत्सव अर्थात् उनका जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। गुरु नानक का मानना था कि ईश्वर कण-कण में व्याप्त है। संपूर्ण विश्व उन्हें सांप्रदायिक एकता, शांति एवं सद्भाव के लिए स्मरण करता है।
सूर्योपासना एवं श्रद्धा के चार दिन
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छठ की दिनोंदिन बढ़ती आस्था और लोकप्रियता इस बात का प्रमाण है कि कुछ तो विशेष है इस पर्व में जो सबको अपनी ओर खींच लेता है। पूजा के दौरान अपने लोकगीतों को गाते हुए, जमीन से जुड़ी परम्पराओं को निभाते हुए हर वर्ग भेद मिट जाता है। सबका एक साथ आकर बिना किसी भेदभाव के ईश्वर का ध्यान करना... यही तो भारतीय संस्कृति है, और इसीलिए छठ है भारतीय संस्कृति का प्रतीक।
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