!['मां' की गोद भी मिले 'मां' की गोद भी मिले](https://cdn.magzter.com/1718015421/1730211740/articles/Xdvht2k261730441516717/1730441775539.jpg)
आज हम इस बात की शिकायत करते नहीं थकते कि बच्चों का सारा समय मोबाइल और अन्य गैजेट्स में ही बीत रहा है, उन्हें बाहर की दुनिया में कोई आकर्षण ही नहीं बचा। न ही उनकी नज़र कभी किसी एक चीज़ पर टिकती है। फिर हम उन्हें अपना वक़्त याद दिलाते हैं, किस तरह घर के भीतर रहना कैदखाने की तरह लगता था और किस तरह अपना सारा वक़्त घर के बाहर बाग-बाग़ीचों, पार्कों, गलियों और छतों पर बिताया करते थे। ये बड़ी हास्यास्पद-सी बात है। ऐसा इसलिए, क्योंकि वो हम ही हैं जिन्होंने बाहर की दुनिया से उनके जुड़ने के सारे तार काटकर अलग कर दिए हैं।
बच्चों के साथ प्रकृति का रिश्ता आज महज़ किताबी बनकर रह गया है। वे प्रकृति में रहते नहीं, बल्कि प्रकृति के बारे में पढ़ते हैं। वे प्रकृति की संतान के रूप में ख़ुद को महसूस करें, उसकी गोद में खेलें, इससे पहले ही उन्हें प्रकृति का रक्षक बनाने की कोशिश शुरू हो जाती है।
महत्व मत समझाएं, बस नाता जुड़वाएं
आज जब हम तेज़ी से प्रकृति के विनाश की ओर बढ़ रहे हैं, ये भूल रहे हैं कि प्रकृति के महत्व को समझने-समझाने से भी कहीं अधिक ज़रूरी है, बच्चों को प्रकृति का सान्निध्य प्रदान करना और उन्हें प्रकृति को महसूस करने के नियमित अवसर उपलब्ध कराना। विगत पीढ़ियों को प्रकृति के ऐसे न जाने कितने सुंदर बिंब मिले, जिनकी कल्पना भी आज के बचपन के लिए मुश्किल है। आकाश में उमड़ती काली काली घटाएं और उनके नीचे, खेतों की हरी-भरी मेड़ों पर दौड़ लगाते बच्चे । बाग़बागीचों में घास, छनकर बहते पानी की कलकल-झरझर और दूर कहीं छोर से उठती मोर की ऊंची आवाज़, जिसे सुनकर एक रोमांच-सा हो आता। जामुन और आमों से लदे पेड़, अमरूद से लदी डालियां, खेतों में फैली धान और गेहूं की लहराती -सी हरी चादर, आज भी बचपन की याद में एक हरापन-सा भर जाती है। हमने अपने बचपन में मिट्टी और पानी की न जाने कितनी प्रकार की गंध का अनुभव किया है और कुएं के जल की सौंधी मिठास से स्वयं को तृप्त किया है, घास में छुपे टिटहरी के अंडों को एक ख़ज़ाने की तरह देखा है और वर्षा के ताज़े जल से भरे तालों में डुबकी भी लगाई है।
किताब नहीं, सीधे साथ से बनेगी बात
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![आलस्य आभूषण है आलस्य आभूषण है](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/zzbO7x8uO1738586780609/1738586965755.jpg)
आलस्य आभूषण है
जैसे फोन की सेटिंग में एनर्जी सेविंग मोड होता है, ऐसे ही आस-पास कुछ लोग भी अपनी ऊर्जा बचाकर रखते हैं। ऐसे लोगों को अमूमन आलसी क़रार कर दिया जाता है, मगर सच तो ये है कि समाज में ऐसे लोग ही सुविधाओं का आविष्कार करते हैं। आलस्य बुद्धिमानों का आभूषण है।
![अबूझ गह्वर जैसा कृष्ण विवर अबूझ गह्वर जैसा कृष्ण विवर](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/L7f6G0t_W1738588139109/1738588386951.jpg)
अबूझ गह्वर जैसा कृष्ण विवर
चांदनी रात में तारों को देखना कितना अलौकिक प्रतीत होता है ना, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि ये तारे, ये आकाशगंगाएं और यह विशाल ब्रह्मांड किस गहरे रहस्य से बंधे हुए हैं? एक ऐसा रहस्य, जिसे हम देख नहीं सकते, लेकिन जो अपनी अदृश्य शक्ति से ब्रह्मांड की धड़कन को नियंत्रित करता है। यह रहस्य है- ब्लैक होल यानी कृष्ण विवर।
![खरे सोने-सा निवेश खरे सोने-सा निवेश](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/CKfSefwE51738586989311/1738587546289.jpg)
खरे सोने-सा निवेश
क्या आपने कभी सोचा है कि क्यों सोना सदियों से एक विश्वसनीय निवेश विकल्प बना हुआ है?
![छत्रपति की कूटनीति छत्रपति की कूटनीति](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/qxtjQ6G7u1738585953921/1738586488566.jpg)
छत्रपति की कूटनीति
पन्हालगढ़ के क़िले में आषाढ़ का महीना आधा बीत चुका था। सिद्दी जौहर और मराठा सैनिकों के बीच घमासान युद्ध छिड़ा हुआ था। ऐसे में साम-दाम-दंड-भेद का प्रयोग करके भी बाहर निकलने का मार्ग नहीं सूझ रहा था। शिवाजी ने अपने सभी सलाहकारों को बुलाया और एक रणनीति रची, दुश्मनों को भेदकर निकल जाने की रणनीति ।
![एक अवसर है दुःख एक अवसर है दुःख](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/3mlDP1-4B1738584303808/1738584505229.jpg)
एक अवसर है दुःख
प्रकृति में कुछ भी अनुपयोगी नहीं है, फिर दु:ख कैसे हो सकता है जिसे महसूस करने के लिए शरीर में एक सुघड़ तंत्र है! अत: दु:ख से भागने के बजाय अगर इसके प्रति जागरूक रहा जाए तो भीतर कुछ अद्भुत भी घट सकता है!
![जोड़ता है जो जल जोड़ता है जो जल](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/fhuHDvDDO1738584527654/1738585280079.jpg)
जोड़ता है जो जल
सारे संसार के सनातनी कुंभ में एकत्रित होते हैं। जो जन्मना है वह भी, जो सनातन के सूत्रों में आस्था रखता है वह भी। दुनियादारी के जंजाल में फंसा गृहस्थ भी और कंदरा में रहने वाला संन्यासी भी।
![अदाकार की खाल पर खर्च नहीं अदाकार की खाल पर खर्च नहीं](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/Tnz5JrK8Q1738582558401/1738582772399.jpg)
अदाकार की खाल पर खर्च नहीं
डॉली को शिकायत है कि जो पोशाक अदाकार की खाल जैसी होती है, उसके किरदार को बिना एक शब्द कहे व्यक्त कर देती है, उसे समुचित महत्व नहीं दिया जाता।
![जब बीमारी पहेली बन जाए... जब बीमारी पहेली बन जाए...](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/Qc7xb4YAc1738588025693/1738588124342.jpg)
जब बीमारी पहेली बन जाए...
कई बार सुनने में आता है कि फलां को ऐसा रोग हो गया जिसका इलाज ढूंढे नहीं मिल रहा। जाने कैसी बीमारी है, कई क्लीनिक के चक्कर लगा लिए मगर रोग पकड़ में ही नहीं आया।' ऐसे में संभव है कि ये रोग दुर्लभ रोग' की श्रेणी में आता हो। इस दुर्लभ रोग दिवस 28 फरवरी) पर एक दृष्टि डालते हैं इन रोगों से जुड़े संघर्षों पर।
![AMBITION ET संकल्प के बाद AMBITION ET संकल्प के बाद](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/EpMe5uRUx1738582789094/1738583308689.jpg)
AMBITION ET संकल्प के बाद
नववर्ष पर छोटे-बड़े संकल्प लगभग सभी ने लिए होंगे।
![श्वास में शांति का वास श्वास में शांति का वास](https://reseuro.magzter.com/100x125/articles/30707/1980342/9neGHffJn1738586618235/1738586767864.jpg)
श्वास में शांति का वास
आज जिससे भी पूछो वो कहेगा मुझे काम का, पढ़ाई का या पैसों का बहुत तनाव है। सही मायने में पूरी दुनिया ही तनाव से परेशान है। इस तनाव को रोका तो नहीं जा सकता मगर एक सहज उपाय है जिससे इस पर नियंत्रण पाया जा सकता है। -