गर्भधारण के साथ ही बच्चे के आने के दिन, महीने गिने जाने लग जाते हैं। उसके पैदा होने के साथ ही माता-पिता दिन महीनों की गणित में फंसे नजर आते हैं कि पहली बार वह कब मुस्कुराया, उसने कब पहला शब्द बोला, कब वह पहली बार खड़ा हुआ वगैरह। यकीनन ये सब जरूरी है, पर इससे इतर कुछ और बातें भी हैं जिनको भांपना जरूरी है। आपको उसकी शारीरिक बढ़त के साथ ही उसकी संज्ञानात्मक बढ़ोतरी पर भी गौर करने की जरूरत है। यानी उसके सोचने, समझने और निर्णय लेने की क्षमता को परखने की भी जरूरत है। इस बाबत मनोचिकित्सक डॉ. स्मिता श्रीवास्तव कहती हैं कि बचपन में हमारे दिमाग का विकास तेजी से हो रहा होता है। ऐसे में आपको बच्चे को काफी करीब से समझना होता है। थोड़ी-सी अनदेखी उसका भविष्य खराब कर सकती है। आपको उसकी छोटी-छोटी बातों और परेशानियों को खुद से समझना होगा। मुमकिन है कि वह रंग न पहचान पा रहा हो या फिर आकारों में अंतर कर पाना उसके लिए मुश्किल हो, वह सिर्फ अपनी बात रखता हो, दूसरे की सुनता ही न हो, पढ़ने में जरूरत से ज्यादा गुस्सा करता हो आदि। अगर कुछ भी सामान्य से अलग है, तो वह यकीनन गौर करने और चिकित्सकीय परामर्श लेने वाली बात है। शारीरिक, मानसिक विकास के साथ ही संज्ञानात्मक विकास भी बेहद जरूरी है।
क्या है संज्ञानात्मक विकास?
सीधे शब्दों में कहें तो संज्ञानात्मक विकास का अर्थ है कि बच्चा कैसे सोचता है, क्या समझता है और कैसे समाधान निकालता है। यह ज्ञान, कौशल, समस्या, समाधान और स्वभाव का विकास है, जो बच्चों को दुनिया के बारे में अपनी समझ बनाने में मदद करता है।
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