"मितेश, तुम समझ नहीं रहे हो. अनाया की जिंदगी अलग है. वह मौडलिंग में है, देररात घर आती है. वह खुद की जिंदगी में बिजी रहती है. सौम्या का वहां उस के फ्लैट में रहना उसे रास नहीं आएगा. फिर वह मात्र 25 साल की ही तो है. वह अभी कैसे किसी की जिम्मेदारी ले सकती है? तुम यहीं अपने शहर ग्वालियर में उस की पढ़ाई का इंतजाम कर दो."
"भैया, उस का मुंबई के फैशन डिजाइनिंग कालेज में एडमिशन हो चुका है. ठीक है भैया, आप मना करते हो तो अनाया के पास नहीं रहेगी सौम्या, बस बाकी आप राय न दें.”
"अरे भई, तुम बुरा क्यों मान जाते हो? मुंबई के खर्चे तुम्हारे बस की बात नहीं है. देखादेखी में पड़ने की आदत से उलटा नुकसान खासकर सौम्या जैसी घरेलू लड़की मुंबई जैसे स्मार्ट शहर में गुजारा है, कैसे करेगी? तुम लोग, सच में खुद को देखते नहीं, दुनिया के पीछे दौड़े रहते हो."
मितेश का दिमाग बहुत गरम हो रहा था. लेकिन अपने से 4 साल बड़े 56 साल के बड़े भाई से उन्हें कभी मुंह लगने की आदत नहीं रही थी.
मितेश गुस्सा दिखाने के लिए बस फोन बिना कुछ कहे काटना चाह रहे थे कि उसे अरुणेश की बीवी और उस की हमउम्र 52 साल की शीना भाभी की जरा कर्कश सी आवाज सुनाई पड़ी, 'मितेश का परिवार भी....बड़े पैरासाइट टाइप के लोग हैं जो करो खुद के बूते करो. कोई स्ट्रगल कर के अपने पैर पर खड़ा हुआ है तो उस के कंधे पर बंदूक रख कर लगे दागने.'
मितेश फोन रखते हुए रुक गए. अरुणेश जब तक फोन बंद करते, शीना भाभी की बात मितेश के कानों में पहुंच चुकी थी.
मितेश की बीवी नलिनी 48 साल की और उन की 2 बेटियां 19 साल की सौम्या और 16 साल की स्निग्धा डिनर टेबल पर डिनर के लिए मितेश का इंतजार कर रही थीं.
मितभाषी नलिनी 8वीं तक के प्राइवेट स्कूल में कक्षा 5 की क्लासटीचर थी. महीने की 10 हजार रुपए की तनख्वाह, फिर भी उस के इस ऊबड़खाबड़ गड्ढे वाली गृहस्थी के लिए किसी तरह मरहम का काम कर देती थी.
पति मितेश एक पान मसाला कंपनी में मैनेजर थे, 40 हजार रुपए प्रतिमाह की नौकरी थी. पेंशन की तो बात ही नहीं, ग्रेच्युटी, प्रोविडेंट फंड भी दोनों भाइयों की तुलना में ऊंट के मुंह में जीरा बराबर ही था.
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