क्यों कन्फ्यूज्ड हैं जेनजी और मिलेनियल्स

26 साल का यंग आईटी प्रोफैशनल का ईयरली पैकेज 50 लाख रुपए, फिर भी वह सैटिस्फाइड नहीं है. वह हर साल जौब बदलता है. उस की लाइफ में पर्सनल रिश्तों की कोई जगह नहीं है. वीकेंड पर पार्टी करना, औफिस क्लीग्स के साथ हैंगआउट, हर 2-3 महीने में महंगा फोन लेना, साल में 3-4 बार फौरेन ट्रिप्स, हर दूसरे साल गाड़ी बदलना फिर भी वह जिंदगी से बोर हो गया है, खुश नहीं है.
एनर्जेटिक, इम्पेशेंट, केयरलैस, टैकसेवी, स्मार्ट, रिबेलियस, एमलैस, कन्फ्यूज्ड, एनर्जी ज्यादा पेशेंस कम, फिजिकल और मैंटल हैल्थ आदि सारे फीचर जेनजी जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए. मिलेनियल्स वह जनरेशन है जो 1981 से 1996 के बीच पैदा हुए, जिसे पता नहीं मैं क्या करूं, कैसे खुशी हासिल करूं वगैरह. इन्हें जेनवाई भी कहा जाता है.
आज के यूथ से अगर पूछा जाए कि उन के लाइफ के गोल्स क्या हैं तो वे बोलेंगे कि उन के पास कोई लिस्ट औफ गोल्स नहीं है. सोचिए, कितनी ऐमलैस है आज की जेनरेशन. यही वजह है कि वह हमेशा स्ट्रैस में रहती है. सारी सुविधाओं के बावजूद भी वह खुश नहीं है.
यूथ को यह समझना होगा कि टारगेट बनाने से ही सफलता हासिल की जा सकती है. जैसे, अगर कोई रेलवे स्टेशन के काउंटर पर टिकट लेने के लिए पहुंचता है, काउंटर पर बैठा व्यक्ति उस से पूछता है, 'कहां का टिकट चाहिए?' तो वह कहता है, 'कहीं का भी दे दो.' और टिकट न मिलने पर और वह कहीं भी नहीं पहुंच पाता.
जब किसी को किसी जगह जाने के बारे में उसे सारी जानकारी होती है कि कौन सी ट्रेन जाएगी, कितने बजे जाएगी, सीट नंबर क्या है तो सफर सुहाना और मंजिल तक पहुंचना आसान होता है लेकिन जब जिंदगी के गोल्स क्लियर नहीं होते तो कहीं भी पहुंचा नहीं जा सकता.
यही हाल युवाओं का है. गैलरी में ढेरों फोटोज हैं लेकिन प्रोफाइल पिक के लिए कोई अच्छी नहीं लग रही. एक ही एंगल की दसियों फोटो हैं और कन्फ्यूज्ड हैं कि अच्छी कौन सी है. हर थोड़े दिनों में लाइफ जीने का तरीका बदल रहे हैं, रिस्क लेने को तैयार नहीं हैं, इनफौर्मेशन है, कन्फर्ट है फिर भी खुश नहीं. सोशल मीडिया में लाइक्स और कमैंट पर ही सारा ध्यान है.
लक्ष्य जिंदगी में उद्देश्य और दिशा देते हैं और बताते हैं कि क्या और कैसे हासिल करना है व किस दिशा में काम और मेहनत करनी है.
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