अब पूरे देश में छाने को बेताब 'आप'
DASTAKTIMES|January 2023
यूपी में होने वाले नगर निकाय चुनाव में भी आम आदमी पार्टी उतरेगी। इसके जरिए निचले स्तर पर आम आदमी पार्टी अपने लिए जमीन तैयार करेगी, ताकि इसका फायदा विधानसभा और लोकसभा चुनावों में मिल सके। गुजरात में भी आम आदमी पार्टी ने यही किया था। इसका फायदा पार्टी को इस बार हुए विधानसभा चुनाव में भी मिला। विधानसभा चुनाव में आप के पांच प्रत्याशी जीते, जबकि वोट शेयर भी 12 प्रतिशत तक पहुंच गया।
अजय सिंह
अब पूरे देश में छाने को बेताब 'आप'

यूंतो गुजरात विधानसभा में भारी-भरकम जीत के साथ भारतीय जनता पार्टी ने सत्ता में वापसी की है। लेकिन वहीं गुजरात में इस बार आम आदमी पार्टी भी दस्तक देने में कामयाब रही और उसने विधानसभा की पांच सीटों पर कब्जा किया। पहले दिल्ली, उसके बाद पंजाब और फिर दिल्ली एमसीडी में मिली जीत ने आम आदमी पार्टी में नया जोश भर दिया है। अब गुजरात में उपस्थिति दर्ज कराने के साथ ही आम आदमी पार्टी को राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा हासिल हो गया है। इस उपलब्धि के बाद अब आम आदमी पार्टी ने नए सिरे से भविष्य की राजनीति का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि आप ने हिमाचल प्रदेश में भी पूरे दमखम के साथ चुनावी मैदान में ताल ठोंकी थी लेकिन उसे वहां निराशा ही हाथ लगी। यही वजह है कि अब आम आदमी पार्टी ने राज्यों में पकड़ बनाने के लिए नए सिरे से रणनीति तैयार की है। अब आप उन राज्यों पर अपनी नजरें गड़ा दी हैं जहां, अभी तक उसे जीत नहीं मिल पाई है। इसमें यूपी, बिहार, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश जैसे उत्तर भारत के राज्य शामिल हैं। पार्टी ने स्थानीय निकाय के चुनावों में भी ताल ठोंकने की तैयारी कर ली है। अरविंद केजरीवाल खुद इसकी मॉनिटरिंग कर रहे हैं। आम आदमी पार्टी की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में भी इनमें से कई मुद्दों पर चर्चा हुई।

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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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