मिशन 2024 - मायावती की नजर अब अति पिछड़ा वोट बैंक पर
DASTAKTIMES|January 2023
बसपा सुप्रीमो मायावती अपने स्वभाव के अनुसार 2024 के आम चुनाव से पहले भी काफी बदली-बदली नज़र आ रही हैं। इसीलिए भले ही उन्होंने अपने शुरुआती दौर की राजनीति में पिछड़ा समाज को अहमियत नहीं दी, लेकिन अब बदले हालात में पिछड़ों और उसमें भी अति पिछड़ा वर्ग के वोटरों को लेकर मायावती कुछ अधिक हाथ-पैर मार रही हैं। इसी कड़ी में उन्होंने प्रदेश बसपा की कमान अपने एक अति पिछड़े नेता को सौंप कर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अति पिछड़ों की सियासत को एक बार फिर से गरमा दिया है।
मंजू सक्सेना
मिशन 2024 - मायावती की नजर अब अति पिछड़ा वोट बैंक पर

बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती की पहचान भले ही एक दलित नेता के रूप में रही हो, लेकिन जब वह सियासत के मैदान में इंट्री करती हैं तो अपनी सहूलियत के हिसाब से राजनैतिक'चोला' बदलती रहती हैं। भले आज मायावती थोड़ी पिछड़ी हुई नजर आ रही हों, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि उन्होंने हार मान ली हो। खासकर 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद वह अपनी खोई हुई ताकत को हासिल करने के लिए ज्यादा ही गंभीर नजर आ रही हैं, जिसका असर भी दिखाई पड़ रहा है। इस समय बसपा सुप्रीमो की नजर मुसलमानों के साथ अति पिछड़े समाज के वोटरों पर लगी है, जो फिलहाल किसी एक पार्टी के पीछे खड़ा नजर नहीं आता है और समय के साथ अपनी पार्टी बदलता रहता है। सब जानते हैं कि मायावती अपने राजनैतिक नफे-नुकसान का बहुत ध्यान रख हैं, इसीलिए कभी वह 'सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय' की बात करती है तो कभी उनके पार्टी के कार्यकताओं द्वारा 'ब्राह्मण शंख बजायेगा, हाथी बढ़ता जाएगा' जैसे नारे दिए जाते हैं। पिछड़ा समाज के वोटरों पर डोरे डालने के लिए उन्हें (पिछड़ा समाज) अनुसूचित जाति में शामिल किए जाने का भी खेल खूब चलता रहा है।

बसपा सुप्रीमो मायावती अपने स्वभाव के अनुसार 2024 के आम चुनाव से पूर्व भी काफी बदली-बदली नजर आ रही हैं। इसीलिए भले ही उन्होंने अपनी शुरुआती दौर की राजनीति में पिछड़ा समाज को अहमियत नहीं दी, लेकिन अब अब बदले हालात में पिछड़ों और उसमें भी अति पिछड़ा वर्ग के वोटरों को लेकर मायावती कुछ अधिक हाथ-पैर मार रही हैं। इसी कड़ी में उन्होंने प्रदेश बसपा की कमान अपने एक अति पिछड़े नेता को सौंप कर उत्तर प्रदेश की राजनीति में अति पिछड़ों की सियासत को एक बार फिर से गरमा दिया है। वैसे पिछड़ों में अति पिछड़ा कि सियासत ठीक वैसे ही काफी पुरानी है, जैसे दलितों और पिछड़ों के आरक्षण कोटे में अति पिछड़ा और अति दलितों को अलग से कोटे में कोटे की बात होती रहती है। गौरतलब हो कि प्रदेश की राजनीति में अति दलितों और अति पिछड़ों की सियासत से कोई भी दल बच नहीं पाया है। चाहे भाजपा हो, सपा हो अथवा कांग्रेस-बसपा, सभी समय-समय पर इस सियासत में गोता लगा चुके हैं। कुल मिलाकर यूपी में जातीय गोलबंदी का खेल लगातार चलता रहता है।

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