भाजपा को फिर नरेन्द्र मोदी से ही आस
DASTAKTIMES|February 2023
भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद उत्तर प्रदेश भाजपा की राज्य कार्यकारिणी की भी बैठक हुई, जिसमें पिछले लोकसभा चुनाव में हारी हुई सीटों पर पूरा जोर लगाने की रणनीति बनी। साथ ही उससे पहले निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने पर भी फोकस किया गया।
देवव्रत
भाजपा को फिर नरेन्द्र मोदी से ही आस

यूं तो चुनाव चाहे विधानसभा का हो या लोकसभा का, यहां तक की स्थानीय निकाय के चुनाव क्यों न हों, एक चुनाव के सम्पन्न होते ही भाजपा दूसरे चुनाव की तैयारी में जुट जाती है। इसे सामान्य भाषा में कहें तो भाजपा हमेशा चुनावी मोड में रहती है। अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है। उससे पहले नौ राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं। इसके लिए भाजपा ने अभी से कमर कस ली है। भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा कहते भी हैं कि हमारे लिए साल 2023 बहुत महत्वपूर्ण है। हमें इस साल नौ राज्यों में चुनाव लड़ना और जीतना है। भाजपा के लिए गुजरात की जीत ऐतिहासिक और अभूतपूर्व है। जबकि हिमाचल के चुनाव में भाजपा सरकार बदलने की परंपरा को बदलने की चाहत रखती थी लेकिन वह ऐसा नहीं कर सकी। चुनाव में किस रणनीति के तहत जाया जाये, इसके लिए भाजपा ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में मंथन किया। स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने भी बैठक में जीत का मंत्र दिया। उन्होंने कमजोर बूथों की पहचान करने और उन्हें मजबूत करने का आह्वान किया। इसके बाद बैठक में बताया गया कि 72,000 बूथों की पहचान की गई है और पार्टी के कार्यकर्ता 1.32 लाख बूथों पर पहुंच गए हैं। भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक के बाद उत्तर प्रदेश भाजपा की राज्य कार्यकारिणी की भी बैठक हुई, जिसमें पिछले लोकसभा चुनाव में हारी हुई सीटों पर पूरा जोर लगाने की रणनीति बनी। साथ ही उससे पहले निकाय चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने पर भी फोकस किया गया। एक ओर भाजपा चुनावी तैयारियों में जुट गयी है वहीं दूसरी ओर विपक्ष अभी तय नहीं कर पा रहा है कि वह किन मुद्दों को लेकर चुनावों में जाये। विपक्ष ने राफेल, पेगासस, सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट, नोटबंदी और ईडब्ल्यूएस आरक्षण समेत कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ अभियान चलाया लेकिन सरकार के पक्ष में आए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों ने विपक्ष को हताश कर दिया। अब भाजपा यह प्रचारित करने में जुट गयी है कि प्रधानमंत्री मोदी के में खिलाफ निराधार आरोप लगाए गए, लेकिन कानूनी जवाब ने विपक्ष का पर्दाफाश कर दिया। यह भी धारणा बनायी जा रही है कि प्रधानमंत्री मोदी एक ईमानदार नेता हैं जो देशहित के लिए काम कर रहे हैं और जिनके नेतृत्व को विश्वस्तर पर सम्मान मिला है। साथ ही उनके नेतृत्व में भारत की छवि भी निखरी है।

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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
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बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।

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