जिधर फायदा, उधर रालोद और सुभासपा
DASTAKTIMES|July 2023
आज भी राष्ट्रीय लोकदल सभी पार्टियों की चहेती बनी हुई है तो इसकी वजह है पश्चिमी यूपी में जाट वोटों पर उसकी दमदार पकड़ वेस्ट यूपी में जाट वोटर हमेशा निर्णायक भूमिका में रहते हैं। किसी भी राजनैतिक दल को रालोद से गठबंधन करने में परहेज नहीं रहता है तो रालोद भी मौके की नजाकत भांप कर किसी भी पार्टी के साथ समझौता करने को तैयार रहता है।
संजय सक्सेना
जिधर फायदा, उधर रालोद और सुभासपा

त्तर प्रदेश की सियासत को आजकल राष्ट्रीय लोकदल के जयंत चौधरी और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (सुभासपा) के नेता ओमप्रकाश राजभर अपने पल-पल बदलते बयानों से गरमाए हुए हैं। 2024 के लोकसभा चुनाव में दोनों दल किस पाले में खड़े होंगे, यह कोई नहीं समझ पा रहा है। यह वह पार्टी है जिनके प्रमुखों को 'किसी' के साथ जाने में परहेज नहीं है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के ताकतवर राजनैतिक घराने की तीसरी पीढ़ी इस समय अपनी सियासी साख बचाने के लिए छटपटा रहा रही है। कभी भारतीय लोकदल के बैनरतले अपनी हनक और धमक दिखाने वाले किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री एवं उससे पूर्व दो बार यूपी की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज हो चुके चौधरी चरण सिंह और उसके बाद उनके पुत्र पूर्व केन्द्रीय मंत्री अजित सिंह जिन्हें लोग छोटे चौधरी के नाम से लोग बुलाते थे, जिनकी मृत्यु के बाद जब से राष्ट्रीय लोकदल की कमान जयंत चौधरी के हाथ आई है, तब से राष्ट्रीय लोकदल का वजूद संकट में आ गया है। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में तय मानक से कम वोट प्रतिशत मिलने के कारण पार्टी की मान्यता समाप्त हो गई है, लेकिन ऐसा लगता है कि इसके बाद भी रालोद का 'सियासी डिमांड' कम नहीं हुआ है। करीब-करीब सभी बड़े राजनैतिक दल रालोद को अपने खेमे में लाने के लिए उत्साहित नजर आते हैं। आज भी राष्ट्रीय लोकदल सभी पार्टियों की चहेती बनी हुई हैतो इसकी वजह है पश्चिमी यूपी में जाट वोटों पर उसकी दमदार पकड़। वेस्ट यूपी में जाट वोटर हमेशा निर्णायक भूमिका में रहते हैं। किसी भी राजनैतिक दल को रालोद से गठबंधन करने में परहेज नहीं रहता है तो रालोद भी मौके की नजाकत भांप कर किसी भी पार्टी के साथ समझौता करने को तैयार रहता है। ऐसा ही अगले वर्ष होने वाले आम चुनाव में भी होता दिख रहा है। 

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