चंद्रयान-3 ने 23 अगस्त को चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग कर इतिहास रच दिया। इसके साथ ही भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला देश बन गया है। इसरो ने चंद्रयान को श्रीहरिकोटा से 14 जुलाई को लॉन्च किया था और मिशन के 41वें दिन चांद के साउथ पोल पर लैंडिंग हुई और भारत का नाम अंतरिक्ष के क्षेत्र में एक खास उपलब्धि से जुड़ गया। आज दुनियाभर के देश चाहते हैं कि चांद और मंगल ग्रह पर वो अपने सफल अभियानों की नई कहानियां लिखें ताकि अंतरिक्ष ताकत के रूप में उनका कद बढ़ता रहे। रूस, अमेरिका, चीन, जापान, जर्मनी जैसे देशों ने लगातार अपने स्पेस मिशन को मजबूती दी है। क्योंकि अंतरिक्ष क्षेत्र के सफल अभियान किसी देश की शक्ति, हैसियत का अंदाजा लगाने के लिए महत्वपूर्ण माने जाने लगे हैं। चंद्रयान को 23 अगस्त को मिली सफलता के ठीक पहले 20 अगस्त को रूस का लूना-25 चांद की सतह पर पहुंचने से पहले ही क्रैश हो गया था। इससे भी भारत के अभियान की महत्ता का पता चलता है। रूस की स्पेस एजेंसी रोस्कोस्मोस ने 11 अगस्त को जब लूना-25 को लॉन्च किया तो उसका सपना था कि वो 10 दिन में चांद पर पहुंच जाए मगर यह सपना नौवें दिन ही टूट गया। वहीं इसरो के वैज्ञानिकों ने कम संसाधनों में ही चांद पर सफल लैंडिंग का मुकाम पा लिया। चंद्रमिशन के तीन चरण थे - पहला- चांद की सतह पर सफल सॉफ्ट लैंडिंग। दूसरा- रोवर प्रज्ञान को चांद की जमीन पर उतारना और तीसरा- डाटा जुटाना और भेजना।
चंद्रयान-3 चांद पर सफलतापूर्वक लैंडिंग करने वाला चौथा देश है। भारत से पहले अमेरिका, रूस और चीन ये उपलब्धि हासिल कर चुके हैं। हालांकि भारत चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उतरने वाला पहला देश इस मिशन के साथ बन चुका है। केन्द्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह का कहना है कि हम दक्षिणी ध्रुव पर इसलिए उतरना चाहते हैं कि क्योंकि हम उन चीजों को खोजना चाहते हैं जो अब तक नहीं खोजी गईं। हमें डार्क क्रेटर्स की जो तस्वीरें मिली हैं, उससे ये लगता है कि वहां पानी है। अगर चंद्रयान-3 को चांद पर पानी होने के और साक्ष्य मिले, तब वैज्ञानिक दृष्टि से नए रास्ते खुल सकते हैं।
प्रज्ञान रोवर और विक्रम लैंडर हैं चंद्रयान 3 की खास विशेषता
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बेगम स्वरा का नया लुक चर्चा में
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संकट में पाकिस्तानी शिया
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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
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पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।