उत्तर प्रदेश में आइएनडी आइए गठबंधन की राह आसान नहीं लग रही है। बसपा सुप्रीमो मायावती ने इस गठबंधन से दूरी बना रखी है तो समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश सिंह यादव गठबंधन के अन्य हिस्सेदारों कांग्रेस और राष्ट्रीय लोकदल के साथ जिस तरह का व्यवहार कर रहे हैं, उससे तो यही लगता है कि आइएनडीआइए जिसे भारतीय जनता पार्टी के लोग 'घमंडिया' गठबंधन कहते हैं, अपने नेताओं के घमंड के कारण बिखर भी सकता है क्योंकि एक तरफ राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण कांग्रेस पूरे देश के साथ-साथ यूपी में भी गठबंधन को लीड करना चाहती है, वहीं सपा प्रमुख अहंकारभरे लहजे में कह रहे हैं कि सपा, गठबंधन में सीटें मांग नहीं रही है, बल्कि दे रही है।
हाल यह है कि गठबंधन के नाम पर समाजवादी पार्टी मध्य प्रदेश से लेकर राजस्थान और छत्तीसगढ़ तक में अपनी दावेदारी पेश कर रही है तो दूसरी ओर यूपी में गठबंधन सहयोगियों के लिए सीट छोड़ने के मामले में ‘ऊंट के मुंह में जीरा’ वाली कहावत चरितार्थ कर रही है। हालात यह हैं कि जिस तरह से आइएनडीआइए गठबंधन में शामिल राजनैतिक दल सीटों के लिए दावेदारी कर रहे हैं, उसका हिसाब लगाया जाता तो यूपी में 80 की जगह सौ-सवा सौ सीटें भी कर दी जाएं तो भी गठबंधन दलों में सीट बंटवारे की लड़ाई थमेगी नहीं। राजनीति के जानकार कहते हैं कि गठबंधन का सारा ध्यान इस ओर लगा है कि कैसे अधिक से अधिक सीटों पर दावेदारी पेश की जा सके, जबकि होना यह चाहिए था कि सीटों के बंटवारे से अधिक गठबंधन को मजबूती प्रदान करने के बारे में सोचा जाए। कैसे बसपा को भी गठबंधन का हिस्सा बनाया जा सके, लेकिन इस मामले में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के बीच दूरियां काफी बढ़ी हुई हैं। कांग्रेस किसी भी तरह से बसपा को गठबंधन में शामिल करना चाहती है, लेकिन समाजवादी पार्टी इसमें कोई रुचि नहीं ले रही है।
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बेगम स्वरा का नया लुक चर्चा में
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प्रकृति, संस्कृति और स्त्री का बहुआयामी विमर्श
स्त्री चेतना, पर्यावरण और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी सुप्रतिष्ठित लेखिका आकांक्षा यादव के आलेखों का संग्रह 'प्रकृति, संस्कृति और स्त्री' को पढ़ते हुए जहां हम विषयवार उनके विचारों, विवरणों और विवेचनों से प्रभावित होते हैं, वहीं हम निबंध विधा के महत्व को भी जान पाते हैं।
जन-गण-मन का भाग्य विधाता है संविधान
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संकट में पाकिस्तानी शिया
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डिजिटल अरेस्ट डर के आगे हार!
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शीतकालीन चारधाम यात्रा में भी गुलजार होगी देवभूमि
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कैसे अमेरिकी जासूसों की चीफ बनी - प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस
बहुत जल्द अमेरिका की राष्ट्रीय खुफिया एजेंसियों की कमान नवनियुक्त निदेशक तुलसी गबाई के हाथ में होगी। अमेरिका की पहली हिंदू सांसद तुलसी का आरएसएस और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से पुराना रिश्ता रहा है। संघ परिवार से जुड़े भारतीय मूल के अमेरिकी हिंदू नागरिक उनके लिए हर चुनाव में लाखों डालर का चंदा जुटाते हैं। आरएसएस के इसी दुलार के कारण अमेरिका में तुलसी 'प्रिंसेज ऑफ द आरएसएस' के नाम से चर्चित हैं। पहले तुलसी का डेमोक्रेटिक पार्टी छोड़ना फिर अचानक डोनाल्ड ट्रम्प को समर्थन देना और फिर रिपब्लिकन पार्टी का दामन थामकर इस मुकाम तक पहुंचना हॉलीबुड के किसी हाई प्रोफाइल पॉलिटिकल ड्रामे से कम नहीं। भारतीय मामलों में अमेरिकी खुफिया एजेंसियों की बेवजह 'अति सक्रिय' होने के बाद अचानक खुफिया एजेंसियों की कमान तुलसी गबार्ड को दिए जाने को भारत के कूटनीतिक दांव के रूप में देखा जा रहा है।
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पीके के नाम से मशहूर प्रशांत किशोर ने जनसुराज पार्टी बनाने के करीब 40 दिन बाद अपने प्रत्याशियों को चुनाव लड़ाया। प्रत्याशियों का चयन बहुत सोच-समझ किया गया। पीके की ओर से जीत के दावे भी थे, लेकिन वह परिणाम के रूप में सामने नहीं आ सके। हालांकि, पीके इस बात से थोड़े खुश जरूर होंगे कि तीन सीटों पर जनसुराज के प्रत्याशी तीसरे स्थान पर रहे।