जब भारत और चीन के जनरल 2020-21 में लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर दोनों देशों के बीच 50 साल में सबसे भीषण सैन्य टकराव को खत्म करने के लिए गंभीर बातचीत में उलझे थे, बीजिंग पर नई दिल्ली के साथ दोहरा खेल खेलने की शंकाएं जाहिर की गईं. दोनों ओर के जवानों के बीच खूनी झड़प- जिसमें कई जानें गई थीं—के लगभग 15 महीने बाद चीन सरकार से जुड़े साइबर गुट कथित तौर पर व्यापक साइबर - जासूसी अभियान में जुट गए थे. मकसद था लद्दाख में एलएसी के पास सात प्रमुख इलेक्ट्रिसिटी लोड डिस्पैच सेंटरों (ईएलडीसी) से मर्जी के मुताबिक इलाके की बिजली आपूर्ति को ठप करना. भारत सरकार को इन हमलों की जानकारी थी, जिनमें देश की राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया व्यवस्थाओं को नाकाम करने के लिए साइबर हमला और इन गुटों की कारगुजारियों की रोकथाम के लिए पहले उठाए गए कदम शामिल थे.
भारत सरकार ने इन साइबर हमलों की पुष्टि अप्रैल 2022 तक नहीं की थी. जब अमेरिका स्थित साइबर सुरक्षा फर्म रिकॉर्डेड फ्यूचर ने हमले के ब्यौरे जाहिर किए तब उसने इनकी पुष्टि की. फर्म ने अंदेशा जताया कि चीनियों की इस कार्रवाई से अक्सर सीसीटीवी नेटवर्कों में इस्तेमाल किए जाने वाले इंटरनेट प्रोटोकॉल (आइपी) कैमरे और इंटरनेट से संचालित डिजिटल वीडियो रिकॉर्डिंग (डीवीआर) उपकरण खतरे में पड़ गए. फर्म के लोगों का साफ तौर पर कहना था कि यह कार्रवाई भारत में बिजली के बुनियादी ढांचे के बारे में जानकारी जुटाने की कोशिश थी. उसके बाद जल्द ही केंद्र ने इस बात की तस्दीक की कि एलएसी के नजदीक भारतीय बिजली संयंत्रों को वाकई निशाना बनाया गया था. केंद्रीय बिजली मंत्री आर.के. सिंह ने कहा कि 2021 में लद्दाख के दो बिजली वितरण केंद्रों को हैक करने की कोशिशों को नाकाम कर दिया गया. आर.के. सिंह ने पत्रकारों से कहा, "ये हमले जासूसी के लिए थे. वे नाकाम हो गए क्योंकि ऐसे साइबर हमलों के खिलाफ हमारी सुरक्षा तगड़ी है."
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