करीब दो दशक पहले दुनिया की सबसे बड़ी मलिन बस्तियों में से एक धारावी के लाखों निवासियों ने सम्मान से जीवन जीने का सपना देखा. इसमें खुद का घर होना, पानी और सार्वजनिक शौचालय के लिए लंबी कतारों में इंतजार का खत्म होना और नियति बन चुकी गंदी नालियों से पटी सड़कों और गरीबी-बीमारी से मुक्ति पाना शामिल था. बात फरवरी 2004 की है जब धारावी- जिसकी नीली तिरपाल वाली झुग्गियों ने फिल्मों में गगनचुंबी इमारतों वाली मुंबई का एक अलग ही चेहरा उकेरा है- के पुनर्विकास की पहली कार्य योजना बनी. इसके तहत सरकार ने इसे सुनियोजित तरीके से टाउनशिप के रूप में विकसित करने की योजना बनाई थी.
बहरहाल, 18 साल में धारावी के रिडेवलपमेंट या पुनर्विकास के लिए बोलियां आमंत्रित करने के तीन प्रयास (2007, 2016 और 2018) नाकाम रहे. इसलिए पिछले साल नवंबर में जब अदाणी समूह की एक कंपनी ने कदम आगे बढ़ाए और मध्य मुंबई में 645 एकड़ में फैले प्राइम लैंड के पुनर्विकास से जुड़ी योजना की बोली जीती तो यह कोई साधारण उपलब्धि नहीं थी. लेकिन कुछ ही महीनों बाद उभरी आशंकाओं ने फिर अनिश्चितता पैदा कर दी है, मसलन अदाणी समूह ने आखिर यह अनुबंध कैसे जीता, हिंडनबर्ग विवाद से उबरने में जुटी कंपनी क्या इस परियोजना पर अमल के लिए वित्तीय रूप से सक्षम होगी और आखिरकार इस प्रोजेक्ट पर क्या वह एक पुनर्वास योजना की तरह काम करेगी या फिर इसे रियल एस्टेट के लिहाज से सोने की खान मानेगी?
धारावी निवासियों का पुनर्वास योजना पर संदेह बना हुआ है, जिसके पूरे होने में करीब दो दशक का समय लगने का अनुमान है. यही नहीं, विपक्षी दल कांग्रेस ने सरकार पर अनुचित ढंग से लाभ पहुंचाने का आरोप तक लगाया है. उसका कहना है कि सफल बोली लगाने वाले पिछले बोलीदाता को बाहर करने और अदाणी समूह को बहुत कम कीमत पर निविदा जीतने में मदद करने के लिए निविदा शर्तों को बदल दिया गया था.
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