भारत के राजनैतिक इतिहास में 18 जुलाई की तारीख को शायद उस दिन की तरह याद किया जाएगा जब 2024 के लोकसभा चुनाव के रणक्षेत्र सज गए–प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) बनाम विपक्ष का आइएनडीआइए यानी इंडिया फर्क बस यह है कि यहां इंडिया का मतलब है भारतीय राष्ट्रीय विकासात्मक समावेशी गठबंधन. यह भारी-भरकम नया नाम केवल पहले अक्षरों से मिलकर बने शब्द की वजह से गढ़ा गया और 26 पार्टियों के उस गठबंधन ने इसे अपना लिया, जो अगले आम चुनाव में मोदी और उनकी जंगी मशीन को हराने के रास्ते की में तलाश में बेंगलूरू में इकट्ठा हुए थे. उसी दिन 38 पार्टियों के नेता दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी की अगुआई वाले एनडीए के बैनर तले इकट्ठा हुए और उन्होंने लगातार तीसरे कार्यकाल के लिए मोदी के नेतृत्व में लड़ने के अपने इरादे का ऐलान किया.
शब्दों के अपने चतुर खेल से उत्साहित विपक्षी गठबंधन ने ऐलान किया कि लड़ाई इंडिया के विचार और मोदी के एनडीए के बीच होगी. ध्वन्यात्मक प्रतीकवाद को लेकर जोशो-खरोश से भरी पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने पूछा, "एनडीए, क्या तुम इंडिया को चैलेंज कर सकते हो ? बीजेपी, क्या तुम इंडिया को चैलेंज कर सकते हो? दूसरे लोगो, क्या तुम इंडिया को चैलेंज कर सकते हो?"
मोदी आखिरकार इस किस्म की चालाकी से मात खाने वालों में से नहीं हैं. उन्होंने नई परिभाषा देते हुए एनडीए को-न्यू इंडिया, डेवलपमेंट और ऐस्पिरेशंस ऑफ द पीपल- बताया, जो "शुद्ध इरादे, साफ नीति और निर्णयशीलता" से संचालित है जबकि विपक्षी गठबंधन के जमावड़े को उन्होंने 'भ्रष्टाचारियों का सम्मेलन' करार दिया, जिसका मंत्र “परिवार का, परिवार के द्वारा और परिवार के लिए" है. हालांकि आधिकारिक तौर पर इसका आयोजन एनडीए के 25 साल पूरे होने के मौके पर किया गया लेकिन इसके पीछे चुनावी तकाजा छिप न सका क्योंकि एनडीए के सहयोगी दल 2019 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद पहली बार इस तरह जुटे थे.
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