प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कई खूबियां हैं, अति-आत्मविश्वास उनमें एक है. दूसरी है मौकों का फायदा उठाने और उन्हें अपना बना लेने की हैरतअंगेज क्षमता. इस 15 अगस्त को जब वे लाल किले की प्राचीर से स्वतंत्रता दिवस के अपने लगातार 10वें संबोधन के लिए खड़े हुए, तो उन्होंने अपना प्रभावी रिपोर्ट कार्ड पेश किया और बताया कि 2014 के बाद उन्होंने और उनकी सरकार ने क्या-क्या हासिल किया है. अपनी सारी उपलब्धियों को उन्होंने आकर्षक नारे–‘‘रिफॉर्म, परफॉर्म और ट्रांसफॉर्म"-के धागे में पिरोया और उम्मीद यही है कि इसका इस्तेमाल वे 2024 के लोकसभा चुनाव के अपने प्रचार अभियान में भी करेंगे. फिर उन्होंने बताया कि आजादी के 100 साल का जश्न मनाते वक्त 2047 में विकसित भारत की ओर देश के महाप्रयाण में अगले पांच साल बेहद अहम क्यों हैं. मगर प्रधानमंत्री का असल संदेश पंचलाइन में था. उन्होंने कहा, “अगले साल मैं इसी लाल किले से आपके समक्ष राष्ट्र की उपलब्धियों और प्रगति का लेखा-जोखा प्रस्तुत करूंगा." यह दुस्साहसी दावा था, खासकर ऐसे प्रधानमंत्री की तरफ से जो अपने दो कार्यकाल के आखिरी पड़ाव में है जहां सत्ता- विरोधी रुझान अच्छे से अच्छे नेता के सिर पर मंडरा रहा होता है.
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