"असंभव है, आप वहां जा नहीं सकते... खासकर इस बरसात के मौसम में..." वहां जाने से पहले प्लस टू विद्यालय, अलौली के शिक्षक ने यही कहा था. उनके साथियों ने बताया था कि वे इसी इलाके के रहने वाले हैं और यहां के भूगोल से परिचित हैं. "इस बरसात के मौसम में आपको दो-दो नदियां पार करनी पड़ेंगी और आठ से दस किमी पैदल चलना पड़ेगा. हम आपको रोकेंगे नहीं, मगर जान-समझ लीजिये रास्ता कैसा है." उनकी बात गलत नहीं थी, यह कोसी नदी की पहली धारा पार करते हुए ही समझ आ गया.
नाव पर सवार एक बुजुर्ग ने तंज कसते हुए जब कहा, "एंह जुत्ता-मौजा पहनकर जाएंगे. खोलिए जुत्ता और हाथ में लीजिए. ई दियर का इलाका है. यहां साहिबी नहीं चलेगी." नाव घाट से दस मीटर पहले ही रुक गई. पानी में उतरना पड़ा. फिर एक से डेढ़ किमी खेत वाले रास्ते में कीचड़ के बीच खुद को फिसलन से बचाते हुए चलना पड़ा. खेत और बहियार के बीच से गुजरते हुए रास्ता भटक जाने का डर था. मगर जब दो घंटे चली इस यात्रा के बाद खगड़िया जिले के प्राथमिक विद्यालय, सुखासन पहुंचे तो वहां स्कूल खुला था. दो शिक्षक भी मौजूद थे. बारिश के मौसम के बीच कई बच्चे पढ़ भी रहे थे और रसोइया इनके लिए मिड-डे मील पका रही थी.
यह वही स्कूल था, जिसमें पिछले दिनों हुए निरीक्षण के वक्त न कोई छात्र मिला था, न शिक्षक शिक्षा विभाग के जिला कार्यक्रम पदाधिकारी को एक ग्रामीण युवक आनंद पासवान ने बताया कि यहां की एक शिक्षिका आशा कुमारी ने उसे छह हजार रुपए के मानदेय पर रखा है, ताकि उसके बदले वह बच्चों को पढ़ाया करे. इस शिकायत पर 25 जुलाई, 2023 इस स्कूल के चारो शिक्षकों से उनके छह माह के वेतन के बराबर राशि वसूलने का आदेश जारी हुआ.
बिहार के इस दुर्गम इलाके में छह माह से अधिक समय से बंद पड़े इस स्कूल को फिर से चालू कराना लगभग असंभव था. और यह असंभव काम संभव हुआ, बिहार सरकार के शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव के. के. पाठक की जिद की वजह से वे पिछले लगभग दो महीने से बिहार की शिक्षा व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन लाने में जुटे हैं.
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