जब पिछले साल के अंत में भारत ने जी20 की अध्यक्षता संभाली, दुनिया गहरी अव्यवस्था की हालत में थी. वह दरअसल बेरोक ग में जा रही थी, क्योंकि यूक्रेन पर रूस के हमले से भड़के युद्ध-जो अब 19वें महीने में है - के नतीजतन महाशक्तियों ने खतरनाक ढंग से एक दूसरे के खिलाफ मोर्चे संभाल लिए. इससे ठीक पहले कोविड- 19 की महामारी ने न केवल जिंदगियों बल्कि देशों की अर्थव्यवस्थाओं को भी चकनाचूर कर दिया था, जिससे उदारीकरण को उलटने की उस प्रक्रिया को और तेज कर दिया जो एक दशक से कुछ पहले शुरू हुई थी. अमेरिका सहित एक के बाद एक देशों का आर्थिक नजरिया ज्यों-ज्यों संकुचित और संरक्षणवादी होता गया, उसने वैश्विक दरारों को और चौड़ा कर दिया. इतना ज्यादा कि 1980 के दशक में वैश्विक कर्ज के लिए धन जुटाने की गरज से खुले बाजारों, निजीकरण और अर्थव्यवस्थाओं के भूमंडलीकरण पर जोर देकर आइएमएफ और विश्व बैंक सरीखी बहुपक्षीय संस्थाओं की तरफ से अपनाया गया 'वाशिंगटन कंसेंसस' या वाशिंगटन सर्वानुमति तकरीबन दफना दी गई. इस बीच शी जिनपिंग की अगुआई में चीन ने महाशक्ति का दर्जा हासिल करने के लिए अमेरिका के एकाधिकार को चुनौती दे दी. उसने भारत के साथ सरहद पर बीते 50 साल का बदतरीन टकराव भी शुरू कर दिया, और विश्वास निर्माण के उन उपायों को तहस-नहस कर दिया जो ठीक ऐसे ही टकरावों को रोकने के लिए तीन दशक की मेहनत से तैयार किए गए थे.
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