इंडिया नाम का अंग्रेजों के राज से कोई लेना-देना नहीं है. यह नाम अंग्रेजों के आगमन से लगभग दो सहस्राब्दी पहले का है
असहमतियों को सुलझाना महान भारतीय गुण है. संविधान सभा इस बात पर विभाजित थी कि हमारे देश को 'इंडिया' कहा जाए या 'भारत', तो हमारे संविधान-निर्माताओं ने गणतंत्र के मूलभूत दस्तावेज का मसौदा तैयार करते वक्त सही समाधान किया, जिसमें 'इंडिया, दैट इज भारत' (इंडिया, जो भारत है) का उल्लेख किया गया और दोनों पक्षों को खुश किया गया. प्रस्तावना में अंग्रेजी में 'वी, द पीपल ऑफ इंडिया' और हिंदी में 'हम, भारत के लोग' की बात की गई है. अनुच्छेद 52 अंग्रेजी में ऐलान करता है, 'देयर शैल बी अ प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया', और हिंदी में इस पद को 'भारत के राष्ट्रपति' कहा गया. इससे एक सरल, अनउलझी प्रथा शुरू हुई. अंग्रेजी में, और इसलिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर, हमारे देश को 'इंडिया' कहा जाता है; हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं में देश का नाम 'भारत' है.
यह चलता रहा है, ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेजी में 'जर्मनी' के नाम से जाना जाने वाला देश वहां के तमाम ड्यूश भाषा-भाषी लोगों के लिए ड्यूशलैंड है (जिस भाषा को हम 'जर्मन' कहते हैं). उस गौरवशाली देश में किसी ने भी इस बात पर जोर नहीं दिया कि अंग्रेजी बोलने वालों को भी ड्यूशलैंड कहना होगा, जिसका राष्ट्रवाद एक समय में हमसे कहीं अधिक उग्र था.
लेकिन कई सहस्राब्दियों और आजादी के बाद 76 साल से जो प्रचलन में है, अब वह हमारी सरकार को नहीं सुहाता. अचानक अंग्रेजी में प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया ने 'प्रेसिडेंट ऑफ भारत' के नाम से औपचारिक निमंत्रण जारी किया और जी20 शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री की कुर्सी के आगे नेम-प्लेट पर रोमन लिपि में 'इंडिया' के बजाए 'भारत' लिखा गया तो ऐसा विवाद उठ खड़ा हुआ, जो निरर्थक और निहायत गैर-जरूरी है, जो बड़े सहज ढंग से चल रहा था, उसके साथ छेड़छाड़ क्यों? जैसा अमेरिकी कहते हैं, "टूटा ही नहीं, तो ठीक क्यों करना?"
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