नागिन को वश में करने की जुगत
India Today Hindi|October 18, 2023
कम जानी-पहचानी लेकिन तोड़ देने वाली बीमारी शिंगल्स या दाद (नागिन, ब्रह्मसूत्री और जनेऊ) को आप टीके और इलाज की मदद से समय से रोक या कम कर सकते हैं 
सोनाली आचार्जी
नागिन को वश में करने की जुगत

पुणे के सोहिल कपाड़िया को पिछले साल शिंगल्स या दाद होने तक पता भी नहीं था कि यह किस बला का नाम है. 68 बरस के ये सेवानिवृत्त बैंक मैनेजर तंदुरुस्त थे, और बीमारियों का उनका कोई इतिहास नहीं था. इतना कमजोर उन्होंने कभी महसूस नहीं किया था-कोविड से भी नहीं. कपाड़िया कहते हैं, “लगता था मानो पूरा बदन जल रहा है. नसों में तेज दर्द की वजह से छह महीने मैं ठीक से खा भी नहीं सका. " वे ज्यादा फिक्रमंद इस बात से हैं कि इस दौर के बाद उन्हें फिर शिंगल्स हो सकता है.

शिंगल्स या दाद वायरल संक्रमण है, जो वैरिसेला-जॉस्टर वायरस से होता है. यह वही वायरस है जिससे चिकनपॉक्स या चेचक होती है. मैक्स हेल्थकेयर के मेडिकल डायरेक्टर डॉ. संदीप बुद्धिराजा कहते हैं, “चेचक होने के बाद वायरस सारी जिंदगी आपके शरीर में रहता है, और सालों बाद फिर सक्रिय होकर तंत्रिका मार्ग से घूमता हुआ त्वचा तक आ सकता है, और दर्दनाक दाने पैदा कर सकता है, जो आम तौर पर आपके धड़ की दाईं या बाईं तरफ फफोलों की पट्टी की तरह दिखते हैं." अपने इन्हीं लक्षणों के कारण मेडिकल जबान में हर्पीज जॉस्टर कहे जाने वाले शिंगल्स या दाद को भारत में बोलचाल की भाषा के अपने नाम मिले–नागिन, ब्रह्मसूत्री, और जनेऊ.

इंडियन पीडीएट्रिक पत्रिका में साल 2000 में छपी स्टडी के मुताबिक, 40 साल से ऊपर के 90 फीसद भारतीय अपने शरीर में वैरिसेला-जॉस्टर वायरस है और इसलिए इस बीमारी के संक्रमण का जोखिम लिए घूमते हैं. वैश्विक अनुमान के मुताबिक, इस वायरस के वाहक हर तीसरे शख्स को अपने जीवनकाल में सामान्यत: दाद होता है. दाद जनस्वास्थ्य के लिए चिंता का विषय है, खासकर बाद की जटिलताओं के कार जो जीवन की गुणवत्ता और लंबी उम्र पर गहरा असर डाल सकती हैं. बाद की इन जटिलताओं में चकत्तों के फीका पड़ने के बाद नसों और त्वचा में तीखा दर्द शामिल है, जिसे पोस्ट-हर्पेटिक न्यूरैल्जिया (पीएचएन) यानी हर्पीज के बाद नसों का दर्द कहा जाता है. अमेरिका के सेंटर्स फॉर डिजीज कंट्रोल ऐंड प्रीवेंशन (सीएडी) के मुताबिक, शिंगल्स आम तौर पर 50 से ऊपर की उम्र के लोगों को होता है, वहीं 60 से ऊपर के लोगों को पीएचएन विकसित होने का जोखिम 30 फीसद ज्यादा होता है. इसका सीधा इलाज नहीं है. मुख्यत: लक्षणों का इलाज किया जाता है, उसकी जड़ का नहीं.

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