बाघ की सवारी
India Today Hindi|December 20, 2023
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मराठा आरक्षण को लेकर विरोध प्रदर्शन को अपने पक्ष में करने में सफल रहे हैं. पर उन्हें राजनैतिक तौर पर प्रभावशाली मराठाओं और तेजी से उभरते अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के बीच संतुलन साधकर चलना होगा.
धवल कुलकर्णी
बाघ की सवारी

राज्यव्यापी आंदोलन से कुशलता के साथ निबटना शिंदे को मराठाओं के एक प्रमुख नेता के तौर पर स्थापित कर सकता है, खासकर आर्थिक रूप से कमजोर उस तबके के बीच जो जातिगत अभिजात्य वर्ग की सत्ता के गलियारे में विशेष पकड़ की वजह से खुद को अलग-थलग महसूस करता है. आंदोलन से निबटने के उनके प्रयासों के कारण ही नवंबर में मराठा एक्टिविस्ट मनोज जरांगे-पाटील को समुदाय के लिए आरक्षण की मांग को लेकर अपना आंदोलन वापस लेना पड़ा.

जरांगे-पाटील ने क्षत्रिय (योद्धा) वर्ग से आने वाले मराठाओं को कुनबी (किसान या खेतिहर) के तौर पर वर्गीकृत करके ओबीसी श्रेणी में शामिल करने की मांग की थी. कुनबी पहले से ही ओबीसी सूची में हैं. सभी मराठाओं को इस श्रेणी में लाने की मांग का कुनबी समूहों सहित ओबीसी ने भी विरोध किया. राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अजित पवार के नेतृत्व वाले गुट की तरफ से मंत्री और ओबीसी लामबंदी का मोर्चा संभालने वले छगन भुजबल भी जरांगे-पाटील पर निशाना साधते रहे हैं.

जरांगे-पाटील ने अपनी मांग को लेकर दबाव बढ़ाने के इरादे से 29 अगस्त को जालना जिले के अंतारवाली-सरती गांव में आमरण अनशन शुरू किया था. पुलिस ने 1 सितंबर को वहां प्रदर्शनकारी भीड़ पर लाठीचार्ज कर दिया, जिस पर राज्यभर में तीखी प्रतिक्रिया हुई और ठंडी पड़ चुकी मराठा आरक्षण आंदोलन की चिंगारी एक बार फिर भड़क उठी. 14 सितंबर को शिंदे ने जरांगे-पाटील से मिलकर मराठाओं को आरक्षण बहाल करने के बाद वादा किया, जिसके बाद मराठा एक्टिविस्ट ने भूख हड़ताल खत्म कर दी. सरकार 40 दिन की समयसीमा (25 अक्तूबर) के भीतर आरक्षण की मांग पूरी करने में नाकाम रही तो जरांगे-पाटील ने एक बार फिर भूख हड़ताल शुरू कर दी. बीड जिले में विरोध हिंसक हो गया और ओबीसी नेताओं के घरों को निशाना बनाया गया.

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