सभी कामयाब राजनैतिक नेताओं की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऐसी पैनी नजर के धनी हैं, जो लुभावने नैरेटिव के साथ जुड़कर उन्हें बड़ी लड़ाइयों की फौरन पहचान करा देती है. उसके बाद वे चतुर रणनीति तैयार करते हैं, बिल्कुल माकूल वक्त पर हमला बोलते हैं, जरूरत पड़े तो मोर्चे पर सबसे आगे रहकर चाहे जैसा भी विरोधी सामने हो, उसे बुरी तरह मात दे देते हैं. इस काबिलियत का उन्होंने हाल में संपन्न विधानसभा चुनावों में बखूबी इजहार किया. यह 2024 के बेहद अहम आम चुनाव से पहले विधानसभा चुनावों का अंतिम दौर था, इसलिए मोदी और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) दोनों के लिए दांव बेहद ऊंचे थे. दोनों की ख्वाहिश साथ-साथ लगातार तीसरी लोकसभा जीत दर्ज करके ऐसा उपलब्धि हासिल करने की है, जो अब तक सिर्फ देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और कांग्रेस के नाम जुड़ी है. और जीत भी सिर्फ पूर्ण बहुमत की नहीं, बल्कि ऐसे बहुमत की, जैसी इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 के आम चुनाव में राजीव गांधी ने हासिल की थी. तब कांग्रेस को लोकसभा की कुल 543 में से 414 सीटें मिली थीं, जो आजादी के बाद से अब तक किसी भी पार्टी को मिला सबसे बड़ा बहुमत है. उस शिखर पर कांग्रेस तब 46.4 फीसद वोट हिस्सेदारी से पहुंची थी. इसके विपरीत, भाजपा की सर्वाधिक वोट हिस्सेदारी 2019 के आम चुनाव में 37.3 फीसद ही रही है, जब उसने अपने दम पर 303 सीटें जीती थीं. इस बार उसका लक्ष्य राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में अपने सहयोगियों के साथ 50 फीसद वोट हासिल करने का है. लगातार तीसरी बार जीत नरेंद्र मोदी को राजनेताओं की उस पांत में खड़ा कर देगी, जहां नेहरू खड़े दिखते हैं.
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शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
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केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"