बिहार के दरभंगा शहर की कल्पना झा को अपनी पहचान बनाने और आर्थिक आजादी हासिल करने का वक्त तब मिला, जब वे 52 वर्ष की थीं. घर-परिवार की उनकी जिम्मेदारियां हो चुकी थीं, जिनमें उनकी युवावस्था खप गई. उनके पति रिटायर हो चुके थे और उनके दो बच्चे अपने करियर में व्यस्त हो गए थे. ऐसे में, पति के रिटायर होने पर मिले फंड में से 10 लाख रुपए के शुरुआती निवेश और अपनी भाभी उमा के साथ मिलकर कल्पना ने अपनी उद्यमशीलता को पंख दिया और पेशे में उसे चुना जो वे सबसे अच्छी तरह से जानती थीं यानी खाना बनाना. उन्होंने 2020 में अपने घर से ही झाजी नामक अचार बनाने का कारोबार शुरू किया. ऐसे सेट-अप से महिलाओं को कारोबार और घर दोनों संभालने का मौका मिल रहा है. कल्पना कहती हैं, "बिहार का समाज अभी भी रूढ़िवादी है. महिलाओं का कारोबार चलाने के लिए बाहर निकलना अभी भी आम नहीं है."
हालांकि कल्पना को अपने उद्यम में उतरने में पांच दशक लग गए, लेकिन वक्त बिल्कुल माकूल है. प्रचार-प्रसार में सोशल मीडिया की मदद, आसान डिजिटल भुगतान विकल्प और अमेजन और फ्लिपकार्ट जैसे ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्मों के कारण खुदरा बिक्री के लिए सीमाएं सिमट गई हैं. कल्पना जैसे छोटे कारोबारियों के लिए व्यापक ग्राहक आधार तक पहुंचने का अवसर मिला है. दिसंबर, 2021 में पहले सीजन वाले शार्क टैंक इंडिया जैसे रियलिटी बिजनेस शो और नरेंद्र मोदी सरकार के 'वोकल फॉर लोकल' पहल के तहत स्थानीय कारोबार पर जोर की वजह से भी भारतीय उद्यमियों के लिए अनुकूल माहौल बनाने में मदद मिली है. कल्पना ने अपने कौशल से विभिन्न तरह के स्वादिष्ट अचार की बोतलें बनाईं, तो मार्केटिंग के जादूगर उनके बेटे ने ऑनलाइन बिक्री के लिए जून 2021 में एक वेबसाइट लॉन्च की. उसके बाद तो कल्पना का कारवां बढ़ता ही गया. वे कहती हैं, "बिक्री हर महीने दोगुनी होती गई और पहले ही साल में 1 करोड़ रुपए का कारोबार हो गया."
Esta historia es de la edición March 20, 2024 de India Today Hindi.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor ? Conectar
Esta historia es de la edición March 20, 2024 de India Today Hindi.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor? Conectar
शब्द हैं तो सब है
शब्द और साहित्य की जादुई दुनिया का जश्न मनाते लेखक-राजनेता शशि थरूर अपने निबंधों की किताब के साथ हाजिर
अब बड़ी भूमिका के लिए बेताब
दूरदराज की मंचीय प्रतिभाओं को निखारने का बड़ा प्लेटफॉर्म बनकर उभरा एमपीएसडी. नई सोच वाले निदेशक के साथ अब वह एक नई राह पर. लेकिन क्या वह एनएसडी जैसा मुकाम बना पाएगा?
डिजिटल डकैतों पर सख्त कार्रवाई
नया-नवेला जिला डीग तेजी से देश में ऑनलाइन ठगी का केंद्र बनता जा रहा था. राज्य सरकार और पुलिस की निरंतर कार्रवाई की वजह से राजस्थान के इस नए जिले में पिछले छह महीने के दौरान साइबर अपराध की गतिविधियों में आई काफी कमी
सनसनीखेज सफलता
पल में मजाकिया, पल में खौफनाक. हिंदी सिनेमा में हॉरर कॉमेडी फिल्मों का आया नया जमाना. चौंकने-डरने को बेताब दर्शकों के कंधों पर सवार होकर भूतों ने धूमधाम से की बॉक्स ऑफिस पर वापसी
ममता के लिए मुश्किल घड़ी
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और उनकी सरकार खिन्न और प्रदर्शन करते राज्य के लोगों का भरोसा के लिए अंधाधुंध कदम उठा रही है
ठोकने की यह कैसी नीति
सुल्तानपुर में जेवर की दुकान में डकैती के आरोपी मंगेश यादव को मुठभेड़ में मार डालने के बाद विपक्षी दलों के निशाने पर योगी सरकार. फर्जी मुठभेड़ एक बार फिर बनी मुद्दा
अग्निपरीक्षा की तेज आंच
अदाणी जांच में हितों के टकराव के आरोपों में घिरीं और अपने ही स्टाफ में उभरते विद्रोह से सेबी की मुखिया से ढेरों जवाब और खुलासों की दरकार
अराजकता के गर्त में वापसी
केंद्र और राज्य के निकम्मेपन से मणिपुर में नए सिरे से उठीं लपटें, अबकी बार नफरत की दरारें और गहरी तथा चौड़ी लगने लगीं, अमन बहाली की संभावनाएं असंभव-सी दिखने लगीं
अब आई मगरमच्छों की बारी
राजस्थान में 29 जुलाई, 2024 की दोपहर विधानसभा में राजस्थान लोकसेवा आयोग (आरपीएससी) परीक्षा में पेपर लीक को लेकर सियासत गरमाई हुई थी. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली ने पेपर लीक के मामलों को लेकर भजनलाल शर्मा सरकार पर यह आरोप जड़ दिया कि अभी तक सरकार ने छोटी-छोटी मछलियां पकड़ी हैं, मगरमच्छ तो अभी भी खुले घूम रहे हैं. इस हमले का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री शर्मा ने कहा, \"आप बेफिक्र रहिए जल्द ही हम उन मगरमच्छों को भी पकड़ेंगे जो बाहर घूम रहे हैं.\"
नहरें: थीं तो बेशक ये पानी के ही लिए
सीवान शहर के पास जुड़कन गांव के कृष्ण कुमार अपने गांव में खुदी पतली-सी नहर की पुलिया पर बैठे मिले. ऐन नहर के किनारे उनका पंपसेट लगा था, जिससे वे अपने खेत की सिंचाई कर रहे थे. वे नहर के बारे में पूछते ही उखड़ गए और कहने लगे, \"50 साल पहले नहर की खुदाई हुई थी. हमारे बाप-दादा ने भी इसके लिए अपनी जमीन दी. हमारा दस कट्ठा जमीन इसमें गया. जमीन का पैसा मिल गया था. मगर इस नहर में एक बूंद पानी नहीं आया. सब जीरो हो गया, जीरो पानी आता तो क्या हमको पंपसेट में डीजल फूंकना पड़ता.\"