पर्यावरण संरक्षण कागजों पर
Open Eye News|September 2024
प्रदूषण पर नियंत्रण, नियंत्रण से बाहर और एनजीटी के आदेशों पर अमल संतोषजनक नहीं
रमेश शर्मा
पर्यावरण संरक्षण कागजों पर

भारत सरकार ने पर्यावरण संरक्षण पर भारी भरकम एक्ट बनाए हैं और इन एक्ट को 1974 में सबसे पहले लाया गया था उसके बाद 2018 तक तमाम कानून लागू हुए जिनमें से सबसे बड़ा पर्यावरण संरक्षण अधिनियम है जिसके साये में वो तमाम कानून हैं जो प्रदूषण पर नियंत्रण और पर्यावरण के संरक्षण पर काम करते हैं। आरटीआई के तहत हासिल दस्तावेजों के आधार पर एक अध्ययन में यह पाया गया कि पर्यावरण की हिफाजत के लिए देश की शीर्ष अदालतों और अभिकरण के निर्देशों पर उतना अमल नहीं हो रहा है जितना होना चाहिए। मप्र स्तर पर हासिल जानकारी के आधार पर तैयार रिपोर्ट कुछ अनोखे तथ्य प्रकट करती है?

देश में विभिन्न कानून बनाने का उद्देश्य उन कानूनों से संबंधित क्षेत्र का बेहतर तरीकों से दे (संचालन करना और उल्लंघनकर्ताओं को प्रावधान के तहत दंडित करना है। बात पर्यावरण से संबंधित करें तो पर्यावरण के संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के लिए हमारे देश में जल अधिनियम और वायु अधिनियम पारित किए गए थे जो कि सत्तर और अस्सी के दशक की महती जरूरत भी थी। उसके बाद धीरे-धीरे बदलते पर्यावरण, फैलते प्रदूषण और लोगों की सेहत पर असर डालने वाले घातक कारकों को काबू में करने के लिए राष्ट्रीय और अन्तर राष्ट्रीय स्तर पर की गई तमाम कोशिशों के बाद नए कानूनों का गठन किया गया। खास तौर पर देखा जाए तो भारत में प्रमुख पर्यावरण कानूनों में जो कानून शामिल हैं वे हैं, जल अधिनियम 1974, वायु अधिनियम 1981, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम 1986, खतरनाक अपशिष्ट संचालन अधिनियम 2016, वन अधिनियम 1980, जैव चिकित्सा अपशिष्ट अधिनियम 2016, इत्यादि। ये सारे अधिनियम हमारे पर्यावरण के संरक्षण और प्रदूषण को नियंत्रण में रखने के लिए बनाए गए हैं।

हमारा संवैधानिक अधिकार

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