जब भी आविष्कार की बात होती जहै, भारत के लोग बेहद फख्र के साथ आर्यभट्ट का नाम ले कर कहते हैं कि जीरोष का आविष्कार हमारे देश की खोज थी. हवा में उड़ने वाले पुष्पक विमान को रामायणकाल का बताया जाता है. अगर आधुनिक युग की टैक्नोलौजी को देखें तो एक भी बड़ा आविष्कार भारत में नहीं हुआ, चाहे वह हवाई जहाज हो, सड़क पर चलने वाली गाड़ियां हों या बातचीत करने के साधन हों. सब के सब विदेशों से आए और यहां की तरक्की का आधार बने.
रिसर्च की दुनिया का सब से बड़ा पैमाना नोबेल पुरस्कार को माना जाता है. भारत को रिसर्च के क्षेत्र में केवल 3 पुरस्कार ही मिले हैं. वर्ष 1930 में सी वेकेंटरमन को भौतिक विज्ञान, 1983 में एस चंद्रशेखर को भी भौतिक विज्ञान और 2009 में वी रामकृष्णनन को रसायन विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार मिले.
अगर सामान्य रूप से रिसर्च को समझने की कोशिश करें तो एक दूसरा उदाहरण पेश है. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में मलिहाबाद का दशहरी आम पूरी दुनिया में मशहूर है. मलिहाबाद को इस की वजह से ही 'फल क्षेत्र' घोषित किया गया. यहां कृषि अनुसंधान केंद्र भी खोला गया जिस का उद्देश्य था कि वह बागबानों और ग्राहकों की पसंद के दशहरी आम की कोई नई किस्म तैयार करे जिस की आयु 10 दिन से अधिक हो. दशहरी आम की शैल्फ लाइफ 10 दिन होने के कारण इस को दशहरी कहा जाता है.
जलवायु परिर्वतन को देखते हुए इस की शैल्फ लाइफ बढ़ाने की बात उठी. कृषि अनुसंधान केंद्र ने दशहरी आम की कोई ऐसी किस्म नहीं तैयार की जो 10 दिनों से अधिक चल सके. इस के कारण दशहरी आम की डिमांड होने के बाद भी इसे विदेशों में नहीं भेजा जा सकता. जो आम विदेशों में भेजे भी जाते हैं वे आसपास के देशों तक जाते हैं और कम तादाद में भी भेजे जाते है. हवाईजहाज से भेजे जाने के कारण महंगा खर्च आता है. अगर दशहरी आम की शैल्फ लाइफ बढ़ जाए तो इस परेशानी से बचा जा सकता है. बागबान अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. यह एक छोटा उदाहरण है. ऐसे बहुत सारे उदाहरण हैं जहां रिसर्च न होने के कारण 75 सालों में भी देश विकसित देशों की बराबरी में खड़ा नहीं हो सका है.
रिसर्च के क्षेत्र में भारत की हालत
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