1. हम ने तो अपने बेटे से बहुत साफ कह दिया है कि पढ़ाई और कैरियर के लिए ज्यादा स्ट्रैस लेने की जरूरत नहीं. सेहत का खयाल पहले रखो क्योंकि एक तंदुरुस्ती हजार नियामत. और फिर आजकल एजुकेशन के कोई माने रह गए हैं क्या? डिग्री तो साक्षर होने का सर्टिफिकेट भर रह गई है. हर कोई तो 80-90 फीसदी नंबर ले आता है. क्या फायदा लाखों रुपए और जवानी का सुनहरा वक्त जाया कर 40-50 हजार रुपए महीने की नौकरी वह भी बेंगलुरु, पुणे, चेन्नई या मुंबई जैसे मैट्रो में करने से, जहां पूरी सैलरी मकान के महंगे किराए, ट्रांसपोर्ट और खानेपीने में ही खर्च हो जाए और उस पर भी दुनियाभर की धक्कामुक्की, परेशानियां झेलो. प्राइवेट कंपनियों की साहूकारी मैंटलिटी किसी से छिपी नहीं जो गिरगिटिया मजदूरों जैसी हम्माली दिनरात कराते हैं. इसलिए हम पढ़ाई के लिए उसे ज्यादा फोर्स नहीं करते... 50-60 फीसदी ले आओ, वही बहुत है.
2. मैं ने तो बेटे को बोल दिया है कि बेटा बीटैक, एमटैक, पीएचडी कुछ भी कर लो, नौकरी करने बाहर तो नहीं जाने देंगे. यहीं जो करना है, कर लो. चाहो तो दुकान डाल लो या अपनी सौफ्टवेयर कंपनी खोल लो, कुछ पैसा हम दे देंगे क्योंकि हम ने जो भी कमाया है, तुम्हारे लिए ही कमाया है. बाकी बैंक लोन मिल जाएगा. हमारी तो इच्छा है कि हमारे पास रहो, इकलौते हो, बुढ़ापे में हमारा खयाल रखो. वो देखा है उज्जैन वाले मौसाजी को, 8 कमरों का दुमंजिला मकान बनाए बैठे हैं और बेटाबेटी दोनों बाहर नौकरी कर रहे हैं. घर में झाड़ तक नहीं लगती. बुड्ढाबुड्ढी दोनों एक कमरे में पड़े रहते हैं. जिस दिन बाई न आए उस दिन चाय भी नसीब नहीं होती तो तरस आता है उन पर क्या मतलब निकला औलाद होने का और उस की लाखों की नौकरी का... नहीं भैया, हम तो तुम्हें बाहर नहीं जाने देंगे.
Esta historia es de la edición October First 2022 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor ? Conectar
Esta historia es de la edición October First 2022 de Sarita.
Comience su prueba gratuita de Magzter GOLD de 7 días para acceder a miles de historias premium seleccionadas y a más de 9,000 revistas y periódicos.
Ya eres suscriptor? Conectar
बौलीवुड और कौर्पोरेट का गठजोड़ बरबादी की ओर
क्या बिना सिनेमाई समझ से सिनेमा से मुनाफा कमाया जा सकता है? कौर्पोरेट जगत की फिल्म इंडस्ट्री में बढ़ती हिस्सेदारी ने इस सवाल को हवा दी है. सिनेमा पर बढ़ते कौर्पोरेटाइजेशन ने सिनेमा पर कैसा असर छोड़ा है, जानें.
यूट्यूबिया पकवान मांगे डाटा
कुछ नया बनाने के चक्कर में मिसेज यूट्यूब छान मारती हैं और इधर हम 'आजा वे माही तेरा रास्ता उड़ीक दियां...' गाना गाते रसोई की ओर टकटकी लगाए इंतजार में बैठे हैं कि शायद अब कुछ खाने को मिल जाए.
पेरैंटल बर्नआउट इमोशनल कंडीशन
परफैक्ट पेरैंटिंग का दबाव बढ़ता जा रहा है. बच्चों को औलराउंडर बनाने के चक्कर में मातापिता आज पेरैंटल बर्न आउट का शिकार हो रहे हैं.
एक्सरसाइज करते समय घबराहट
ऐक्सरसाइज करते समय घबराहट महसूस होना शारीरिक और मानसिक कारणों से हो सकता है. यह अकसर अत्यधिक दिल की धड़कन, सांस की कमी या शरीर की प्रतिक्रिया में असंतुलन के कारण होता है. मानसिक रूप से चिंता या ओवरथिंकिंग इसे और बढ़ा सकती है.
जब फ्रैंड अंधविश्वासी हो
अंधविश्वास और दोस्ती, क्या ये दो अलग अलग रास्ते हैं? जब दोस्त तर्क से ज्यादा टोटकों में विश्वास करने लगे तो किसी के लिए भी वह दोस्ती चुनौती बन जाती है.
संतान को जन्म सोचसमझ कर दें
क्या बच्चा पैदा कर उसे पढ़ालिखा देना ही अपनी जिम्मेदारियों से इतिश्री करना है? बच्चा पैदा करने और अपनी जिम्मेदारियां निभाते उसे सही भविष्य देने में मदद करने में जमीन आसमान का अंतर है.
बढ़ रहे हैं ग्रे डिवोर्स
आजकल ग्रे डिवोर्स यानी वृद्धावस्था में तलाक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. जीवन की लंबी उम्र, आर्थिक स्वतंत्रता और बदलती सामाजिक धारणाओं ने इस ट्रैंड को गति दी है.
ट्रंप की दया के मुहताज रहेंगे अडानी और मोदी
मोदी और अडानी की दोस्ती जगजाहिर है. इस दोस्ती में फायदा एक को दिया जाता है मगर रेवड़ियां बहुतों में बंटती हैं. किसी ने सच ही कहा है कि नादान की दोस्ती जी का जंजाल बन जाती है और यही गौतम अडानी व नरेंद्र मोदी की दोस्ती के मामले में लग रहा है.
विश्वगुरु कौन भारत या चीन
चीन काफी लंबे समय से तमाम विवादों से खुद को दूर रख रहा है जिन में दुनिया के अनेक देश जरूरी और गैरजरूरी रूप से उलझे हुए हैं. चीन के साथ अन्य देशों के सीमा विवाद, सैन्य झड़पों या कार्रवाइयों में भारी कमी आई है. वह इस तरफ अपनी ऊर्जा नष्ट नहीं करना चाहता. इस वक्त उस का पूरा ध्यान अपने देश की आर्थिक उन्नति, जनसंख्या और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने की तरफ है.
हिंदू एकता का प्रपंच
यह देहाती कहावत थोड़ी पुरानी और फूहड़ है कि मल त्याग करने के बाद पीछे नहीं हटा जाता बल्कि आगे बढ़ा जाता है. आज की भाजपा और अब से कोई सौ सवा सौ साल पहले की कांग्रेस में कोई खास फर्क नहीं है. हिंदुत्व के पैमाने पर कौन से हिंदूवादी आगे बढ़ रहे हैं और कौन से पीछे हट रहे हैं, आइए इस को समझने की कोशिश करते हैं.