दिल्ली के बुराड़ी इलाके में घटी ललित भाटिया के परिवार की सामूहिक आत्महत्या का मामला किसे याद नहीं. इस घटना ने सभी के रोंगटे खड़े कर दिए थे. आखिर महानगर में ठीकठाक खातेपीते परिवार को ऐसा क्या हुआ कि मकान के अंदर परिवार के 11 सदस्यों की लाशें ऐसे टंगी रहीं जैसे छत पर सूखते कपड़े टंगे रहते हैं.
मामला अंधविश्वास का था. मोक्ष के बाद उस कथित भगवान तक पहुंचने का था जिस का डर और लालच दुनियाभर के सभी धर्मों के पंडेपुरोहित अपनेअपने अनुयायियों को बांचा करते हैं. मामला धार्मिक कुरीतियों को कट्टरता से फौलो करने का था. उस सामूहिक कांड के मास्टरमाइंड ललित की डायरी से तो यही जानने को मिला कि किस तरह पूरा परिवार धार्मिक कर्मकांडों में जकड़ा आत्महत्या हुआ था और वह इस कृत्य को भगवान तक पहुंचने का रास्ता मानता था. जिस की प्लानिंग और प्रैक्टिस पूरा परिवार हर रात किया करता था.
प्रैक्टिस के दौरान फंदे पर लटकने से पहले पूरा परिवार हवन किया करता था. इस के बाद डायरी में लिखे तरीके के अनुसार फंदों पर लटक जाया करता था. पुलिस के अनुसार ललित की डायरी में लिखा था कि उस के मृतक पिता की आत्मा का परिवार को निर्देश था कि 'यह भगवान का रास्ता है और जब वे यह कर्मकांड कर रहे होंगे तब मैं (मृतक पिता) खुद प्रकट हो कर सब को बचा लूंगा.'
जाहिर है यह पूरा परिवार अथाह धार्मिक था. ऐसा एकाएक या एक दिन में नहीं हो जाता. इस के लिए दिमाग की ब्रेनवाशिंग जरूरी होती है जो तमाम धर्म के ठेकेदार अपने अनुयायियों को हर रोज बीपी की मैडिसिन की तरह डायरैक्टइनडायरैक्ट दिया करते हैं. जिस पंडे से निर्देश ले कर यह परिवार यह सब कर्मकांड कर रहे थे उसे भी अच्छाखासा दानदक्षिणा देते रहे होंगे. खूब मंदिरों के चक्कर भी काटते रहे होंगे, सालों के अंधविश्वास का जमावड़ा ऐसा हुआ कि इस का अंत इतना डरावना निकल कर सामने आया.
अंधविश्वास के फेर में पड़ कर मौत को गले लगा लेना या किसी को मौत के घाट उतार देना, यह कोई पहली घटना नहीं है. भारत देश में हर समय कोई न कोई इन कर्मकांडों में घुसा हुआ नजर आ जाता है या हर दूसरे दिन अंधविश्वास के चलते ऐसी घटनाएं देखी जाती हैं.
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